महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-20

षट्पंचाशत्तम (56) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध, धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय, कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार, भीमसेन द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश, अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध तथा अश्वत्थामा का अर्जुन के साथ घोर युद्ध करके पराजित होना


संजय कहते हैं-राजन! पांचालों, चेदियों और केकयों से घिरे हुए भीमसेन को स्‍वयं वैकर्तन कर्ण ने बाणों द्वारा अवरुद्ध करके उन्‍हें आगे बढ़ने से रोक दिया। तदनन्‍तर समरांगण में कर्ण ने भीमसेन के देखते-देखते चेदि, कारुष और सृंजय महारथियों का संहार आरम्‍भ कर दिया। तब भीमसेन ने भी रथियों में श्रेष्ठ कर्ण को छोड़कर जैसे आग घास फूंस को जलाती है, उसी प्रकार कौरव-सेना को दग्‍ध करने के लिये उस पर आक्रमण किया। सूतपुत्र कर्ण ने समरांगण में सहस्रों पांचाल, केकय तथा सृंजय योद्धाओं को, जो महाधनुर्धर थे, मार डाला। अर्जुन संशप्तकों की, भीमसेन कौरवों तथा कर्ण पांचालों की सेना में घुसकर युद्ध करते थे। इन तीनों महारथियों ने बहुत से शत्रुओं का संहार कर डाला। अग्‍नि के समान तेजस्‍वी इन तीनों वीरों द्वारा दग्‍ध होते हुए क्षत्रिय समरांगण में विनाश को प्राप्‍त हो रहे थे। राजन! यह सब आपकी कुमन्‍त्रणा का फल है। भरतश्रेष्ठ तब दुर्योधन ने कुपित होकर नौ बाणों से नकुल तथा उनके चारों घोड़ों को घायल कर दिया। जनेश्वर! इसके बाद अमेय आत्‍मबल से सम्‍पन्न आपके पुत्र ने एक क्षुरप्र के द्वारा सहदेव की सुवर्णमयी ध्‍वजा काट डाली। राजन! तत्‍पश्चात समर-भूमि में आपके पुत्र को क्रोध में भरे हुए नकुल ने सात और सहदेव ने पांच बाण मारे। वे दोनों श्रेष्ठ वीर समस्‍त धनुर्धारियों में प्रधान थे। दुर्योधन ने कुपित होकर उन दोनों की छाती में पांच-पांच बाण मारे।

राजन! फिर सहसा उसने दो भल्‍लों से नकुल और सहदेव के धनुष काट डाले तथा उन दोनों को भी इक्कीस बाणों से घायल कर दिया। फिर वे दोनों वीर इन्‍द्रधनुष के समान सुन्‍दर दूसरे श्रेष्ठ धनुष लेकर युद्धस्‍थल में देवकुमारों के समान सुशोभित होने लगे। तत्‍पश्चात जैसे दो महामेघ किसी पर्वत पर जल की वर्षा करते हों, उसी प्रकार दोनों वेगशाली बन्‍धु नकुल और सहदेव भाई दुर्योधन पर युद्ध में भयंकर बाणों की वृष्टि करने लगे। महाराज! तब आपके महारथी पुत्र ने कुपित होकर उन दोनों महाधनुर्धर पाण्‍डुपुत्रों को बाणों द्वारा आगे बढ़ने से रोक दिया। भारत! उस समय केवल मण्‍डलाकार धनुष ही दिखायी देता था और उससे चारों ओर छूटने वाले बाण सूर्य की किरणों के समान सम्‍पूर्ण दिशाओं को ढके हुए दृष्टिगोचर होते थे। उस समय जब आकाश आच्‍छादित होकर बाणमय हो रहा था, तब नकुल और सहदेव ने आपके पुत्र का स्‍वरुप काल, अन्‍तक एवं यमराज के समान भयंकर देखा। आपके पुत्र का वह पराक्रम देखकर सब महारथी ऐसा मानने लगे कि माद्री के दोनों पुत्र मृत्‍यु के निकट पहुँच गये। राजन! तब पाण्‍डव-सेनापति द्रुपदपुत्र महारथी धृष्टद्युम्न जहाँ राजा दुर्योधन था, वहाँ जा पहुँचे। महारथी शूरवीर माद्रीकुमार नकुल-सहदेव को लांघकर धृष्टद्युम्न ने अपने बाणों की मार से आपके पुत्र को रोक दिया। तब अमेय आत्‍मबल से सम्‍पन्न आपके अमर्षशील पुत्र पुरुष-रत्न दुर्योधन ने हंसते हुए पच्चीस बाण मारकर धृष्टद्युम्न को घायल कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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