महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-21

त्रयोदश (13) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रयोदश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

नहुष का इन्द्राणी को कुछ काल की अवधि देना, इन्द्र का ब्रह्महत्या से उद्धार तथा शची द्वारा रात्रि देवी की उपासना

शल्य कहते हैं- उस समय देवराज नहुष ने इन्द्राणी को देखकर कहा- 'शुचिस्मिते! मैं तीनों लोकों का स्वामी इन्द्र हूँ। उत्‍तम रूप-रंगवाली सुन्दरी! तुम मुझे अपना पति बना लो।' नहुष के ऐसा कहने पर पतिव्रता देवी शची भय से उद्विग्न हो तेज हवा में हिलने वाले केले के वृक्ष की भाँति काँपने लगीं। उन्होंने मस्तक झुकाकर ब्रह्माजी को प्रणाम किया और भयंकर दृष्टिवाले देवराज नहुष से हाथ जोड़कर कहा- 'देवेश्वर! मैं आप से कुछ समय की अवधि लेना चाहती हूँ।' 'अभी यह पता नहीं है कि देवेन्द्र किस अवस्था में पड़े हैं? अथवा कहाँ चले गये हैं?' प्रभो! इसका ठीक-ठीक पता लगाने पर यदि कोई बात मालूम नहीं हो सकी, तो मैं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगी। यह मैं आप से सत्य कहती हूँ। इन्द्राणी के ऐसा कहने पर नहुष को बड़ी प्रसन्नता हुई।

नहुष बोले- सुन्दरी! तुम मुझसे यहाँ जैसा कह रही हो ऐसा ही हो। इसके अनुसार पता लगाकर तुम्हें मेरे पास आ जाना चाहिये; इस सत्य को सदा याद रखना। नहुष से विदा लेकर शुभलक्षणा यशस्विनी शची उस स्थान से निकली और पुनः बृहस्पति जी के भवन में चली गयी। नृष श्रेष्ठ! इन्द्राणी की बात सुनकर अग्नि आदि सब देवता एकाग्रचित्त होकर इन्द्र की खोज करने के लिये आपस में विचार करने लगे। फिर बातचीत में कुशल देवगण सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति के कारण भूत देवाधिदेव भगवान विष्णु से मिले और भय से उद्विग्न हो उनसे इस प्रकार बोले- 'देवेश्वर! देवसमुदाय के स्वामी इन्द्र ब्रह्महत्या से अभिभूत होकर कहीं छिप गये हैं। भगवन! आप ही हमारे आश्रय और सम्पूर्ण जगत के पूर्वज तथा प्रभु हैं। 'आपने समस्त प्राणियों की रक्षा के लिये विष्णु रूप धारण किया है। यद्यपि वृत्रासुर आपकी ही शक्ति से मारा गया है तथापि इन्द्र को ब्रह्महत्या ने आक्रान्त कर लिया है। सुरगण श्रेष्ठ! अब आप ही उनके उद्धार का उपाय बताइये।' देवताओं की यह बात सुनकर भगवान विष्णु बोले- 'इन्द्र यज्ञों द्वारा केवल मेरी ही अराधना करें, इससे मैं वज्रधारी इन्द्र को पवित्र कर दूँगा। पाकशासन इन्द्र पवित्र अश्वमेघ यज्ञ के द्वारा मेरी आराधना करके पुनः निर्भय हो देवेन्द्र-पद को प्राप्त कर लेंगे और खोटी बुद्धिवाला नहुष अपने कर्मों से ही नष्ट हो जायेगा। देवताओ! तुम आलस्य छोड़कर कुछ काल तक और यह कष्ट सहन करो।' भगवान विष्णु की यह शुभ, सत्य तथा अमृत के समान मधुर वाणी सुनकर गुरु तथा महर्षियों सहित सब देवता उस स्थान पर गये, जहाँ भय से व्याकुल हुए इन्द्र छिपकर रहते थे। नरेश्वर! वहाँ महात्मा महेन्द्र की शुद्धि के लिये एक महान अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान हुआ, जो ब्रह्महत्या को दूर करने वाला था। युधिष्ठिर! इन्द्र ने वृक्ष, नदी, पर्वत, पृथ्वी और स्त्री समुदाय में ब्रह्महत्या को बाँट दिया। इस प्रकार समस्त भूतों में ब्रह्महत्या का विभाजन करके देवेश्वर इन्द्र ने उसे त्याग दिया और स्वयं मन को वश में करके निष्पाप तथ निश्चिन्त हो गये। परन्तु बल नामक दानव का नाश करने वाले इन्द्र जब अपना स्थान ग्रहण करने के लिये स्वर्गलोक में आये, तब उन्होंने देखा- नहुष देवताओं के वरदान से अपनी दृष्टि मात्र से समस्त प्राणियों के तेज को नष्ट करने में समर्थ और दुःसह हो गया है। यह देखकर वे काँप उठे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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