महाभारत शल्य पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-27

पंचदश (15) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पंचदश अध्याय: श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद


दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का एवं अर्जुन और अश्वत्थामा का तथा शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर संग्राम


संजय कहते हैं- महाराज! एक ओर दुर्योधन तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न महान युद्ध कर रहे थे। वह युद्ध बाणों और शक्तियों के प्रहार से व्याप्त हो रहा था। राजाधिराज! जैसे वर्षाकाल में सब ओर मेघों की जल धाराएँ बरसती हैं, उसी प्रकार उन दोनों की ओर से बाणों की सहस्रों धाराएँ गिर रही थीं। राजा दुर्योधन पांच शीघ्रगामी बाणों द्वारा भयंकर बाण वाले द्रोणहन्ता धृष्टद्युम्न को बींधकर पुनः सात बाणों द्वारा उन्‍हें घायल कर दिया। तब सुदृढ़ पराक्रमी बलवान धृष्टद्युम्न ने संग्राम भूमि में सत्तर बाण मारकर दुर्योधन को पीड़ित कर दिया।

भरतश्रेष्ठ! राजा दुर्योधन को पीड़ित हुआ देख उसके सारे भाईयों ने विशाल सेना के साथ आकर धृष्टद्युम्न को घेर लिया। राजन! उन अतिरथी वीरों द्वारा सब ओर से घिरे हुए धृष्टद्युम्न अपनी अस्त्र संचालन की फुर्ती दिखाये हुए समरभूमि में विचरने लगे। दूसरी ओर शिखण्डी ने प्रभद्रकों की सेना साथ लेकर कृतवर्मा और महारथी कृपाचार्य- इन दोनों धनुर्धरों से युद्ध छेड़ दिया। प्रजानाथ! वहाँ भी जीवन का मोह छोड़कर प्राणों की बाजी लगाकर खेले जाने वाले युद्धरूपी जूए में लगे हुए समस्त सैनिकों में घोर संग्राम हो रहा था।

इधर शल्य सम्पूर्ण दिशाओं में बाणों की वर्षा करते हुए युद्ध में सात्यकि और भीमसेन सहित पाण्डवों को पीड़ा देने लगे। राजेन्द्र! वे युद्ध में यमराज के तुल्य पराक्रमी नकुल और सहदेव के साथ भी अपने पराक्रम और अस्त्रबल से युद्ध कर रहे थे। जब शल्य अपने बाणों से पाण्डव महारथियों को आहत कर रहे थे, उस समय महासमर में उन्हें कोई अपना रक्षक नहीं मिलता था। जब धर्मराज युधिष्ठिर शल्य की मार ये अत्यन्त पीड़ित हो गये, तब माता को आनंदित करने वाले शूरवीर नकुल ने बड़े वेग से अपने मामा पर आक्रमण किया। शत्रुवीरों का संहार करने वाले नकुल ने समरांगण में शल्य को शरसमूहों द्वारा आच्छादित करके मुस्कराते हुए उनकी छाती में बाण मारे। वे बाण सब-के-सब लोहे के बने हुए थे। कारीगर ने उन्हें अच्छी तरह माँज-धोकर स्वच्छ बनाया था। उनमें सोने के पंख लगे थे और उन्हें सान पर चढ़ाकर तेज किया गया था। वे दसों बाण धनुषरूपी यन्त्र पर रखकर चलाये गये थे। अपने महामनस्वी भानजे के द्वारा पीड़ित हुए शल्य ने झुकी हुई गाँठवाले बहुसंख्यक बाणों द्वारा नकुल को गहरी चोट पहुँचायी।

तदनन्तर राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, सात्यकि और माद्रीकुमार सहदेव ने एक साथ मद्रराज शल्य पर आक्रमण किया। वे अपने रथ की घर्घराहट से सम्पूर्ण दिशाओं और विदिशाओं को गुँजाते हुए पृथ्वी को कम्पित कर रहे थे। सहसा आक्रमण करने वाले उन वीरों को शत्रुविजयी सेनापति शल्य ने समरभूमि में आगे बढ़ने से रोक दिया। माननीय नरेश! मद्रराज शल्य ने युद्धस्थल में युधिष्ठिर को तीन, भीमसेन को पांच, सात्यकि को सौ और सहदेव को तीन बाणों से घायल करके महामनस्वी नकुल के बाणसहित धनुष को क्षुरप्र से काट डाला। शल्य के बाणों से कटा हुआ वह धनुष टूक-टूक होकर बिखर गया। इसके बाद माद्रीपुत्र महारथी नकुल ने तुरन्त ही दूसरा धनुष हाथ में लेकर मद्रराज के रथ को बाणों से भर दिया। आर्य! साथ ही युधिष्ठिर और सहदेव ने दस-दस बाणों से उनकी छाती छेद डाली। फिर भीमसेन ने साठ और सात्यकि ने कंकपत्रयुक्त दस बाणों से मद्रराज पर वेगपूर्वक प्रहार किया।

तब कुपित हुए मद्रराज शल्य ने सात्यकि को झुकी हुई गाँठवाले नौ बाणों से घायल करके फिर सत्तर बाणों द्वारा क्षत-विक्षत कर दिया। मान्यवर! इसके बाद शल्य ने उनके बाण सहित धनुष मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट दिया और संग्राम में उनके चारों घोड़ों को भी मौत के घर भेज दिया। सात्यकि को रथहीन करके महारथी मद्रराज शल्य ने सौ बाणों द्वारा उन्हें सब ओर से घायल कर दिया। कुरुनन्दन! इतना ही नहीं, उन्होंने क्रोध में भरे हुए माद्रीकुमार नकुल-सहदेव, पाण्डुपुत्र भीमसेन तथा युधिष्ठिर को भी दस बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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