महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 110 श्लोक 1-10

दशाधिकशततम (110) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद


रूप-सौन्दर्य और लोकप्रियता की प्राप्ति के लिये मार्गशीर्ष मास में चन्द्र-व्रत करने का प्रतिपादन

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! महाज्ञानी युधिष्ठिर ने बाणशय्या पर सोये हुए कुरुकुल के वृद्ध पितामह भीष्म जी के निकट जाकर इस प्रकार प्रश्‍न किया।

युधिष्ठिर बोले- पितामह! मनुष्य के अंगों को सुन्दर रूप का सौभाग्य कैसे प्राप्त होता है? मनुष्य में लोकप्रियता कैसे आती है? धर्म, अर्थ और काम से युक्त पुरुष किस प्रकार सुख का भागी हो सकता है।

भीष्म जी ने कहा- राजेन्द्र! मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मूल नक्षत्र से चन्द्रमा का योग होने पर चन्द्र सम्बन्धी व्रत आरंभ करें। चन्द्रमा के स्वरूप का इस प्रकार चिंतन करना चाहिये। देवता सहित मूल नक्षत्र के द्वारा उनके दोनों चरणों की भावना करें और पिण्डलियों में रोहिणी को स्थापित करें। जांघों में अश्विनी नक्षत्र, ऊरुओं में पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, गुह्य भाग में पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र तथा कटि भाग में कृत्तिका की स्थिति समझें।

नाभि में पूर्वाभाद्रपदा और उत्तराभाद्रपदा को जानें, नेत्रमण्डल में रेवती, पृष्ठ भाग में धनिष्ठा, अनुराधा तथा उत्तरा को स्थापित समझें।

राजन! दोनों भुजाओं में विशाखा का, हाथों में हस्त का, अंगुलियों में पुनर्वसु का तथा नखों में आश्‍लेषा की स्थापना करें। राजेन्द्र! ज्येष्ठा नक्षत्र से ग्रीवा की, श्रवण से दोनों कानों की, पुष्य नक्षत्र की स्थापना से मुख की तथा स्वाती नक्षत्र से दातों और ओठों की भावना बताई जाती है। शतभिषा को हास, मघा को नासिका, मृगशिरा को नेत्र और मित्र (अनुराधा) को ललाट समझें।

नरेश्‍वर! भरणी को सिर और आद्रा को चन्द्रमा के केश समझें। (इस प्रकार विभिन्न अंगों में नक्षत्रों की स्थापना करके तत्सम्बन्धी मंत्रों द्वारा उन-उन अंगों की पूजा एवं जप) होम आदि प्रतिदिन करें। पौर्णमासी को व्रत समाप्त होने पर वेदों के पारंगत विद्वान ब्राह्मण को घृत दान करें। ऐसा करने से मनुष्य पूर्णिमा के चन्द्रमा की भाँति परिपूर्णांग सौभाग्यशाली, दर्शनीय तथा ज्ञान का भागी होता है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में एक सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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