महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 142 श्लोक 1-20

द्विचत्‍वारिंशदधिकशततम (142) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: द्विचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

भगवान श्रीकृष्ण का कर्ण से पाण्‍डव पक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन

  • संजय कहते हैं- राजन! विपक्षी वीरों का वध करने वाले भगवान केशव कर्ण की उपयुक्‍त बात सुनकर ठठाकर हँस पड़े और मुस्‍कराते हुए इस प्रकार बोले। (1)
  • श्रीभगवान बोले- कर्ण! मैं जो राज्‍य की प्राप्ति का उपाय बता रहा हुँ, जान पड़ता है वह तुम्‍हें ग्राह्य नहीं प्रतीत होता है। तुम मेरी दी हुई पृथ्‍वी का शासन नही करना चाहते हो। (2)
  • पाण्‍डवों की विजय अवश्‍यम्‍भावी है। इस विषय में कोई भी संशय नहीं है। पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन का वानरराज हनुमान से उपलक्षित वह भयंकर विजयध्‍वज बहुत ऊँचा दिखायी देता है। (3)
  • विश्वकर्मा ने उस ध्‍वज में दिव्‍य माया की रचना की है। वह ऊँची ध्‍वजा इन्‍द्रध्‍वज के समान प्रकाशित होती है। उसके ऊपर विजय की प्राप्ति कराने वाले दिव्‍य एवं भयंकर प्राणी दृष्टिगोचर होते हैं। (4)
  • कर्ण! धनंजय का वह अग्नि के समान तेजस्‍वी तथा कान्तिमान ऊँचा ध्‍वज एक योजन लम्‍बा है। वह ऊपर अथवा अगल-बगल में पर्वतों तथा वृक्षों से कहीं अटकता नहीं है। (5)
  • कर्ण! जब युद्ध में मुझ श्रीकृष्‍ण को सारथी बनाकर आये हुए श्‍वेतवाहन अर्जुन को तुम ऐन्‍द्र,आग्‍नेय तथा वायव्‍य अस्‍त्र प्रकट करते देखोगे और जब गांडीव की वज्र-गर्जना के समान भयंकर टंकार तुम्‍हारे कानों में पड़ेगी, उस समय तुम्‍हें सत्‍ययुग, नेता और द्वापर की प्रतीति नही होगी केवल कलहस्‍वरूप भयंकर कलि ही दृष्टिगोचर होगा। (6-7)
  • जब जप और होम में लगे हुए कुन्‍तीपुत्र युधिष्ठिर को संग्राम में अपनी विशाल सेना की रक्षा करते तथा सूर्य के समान दुर्धर्ष होकर शत्रु सेना को संतप्‍त करते देखोगे, उस समय तुम्‍हें सत्‍ययुग, त्रेता और द्वापर की प्रतीति नहीं होगी। (8-9)
  • जब तुम युद्ध में महाबली भीमसेन को दु:शासन का रक्‍त पीकर नाचते तथा मद की धारा बहाने वाले गजराज के समान उन्‍हें शत्रुपक्ष की गजसेना का संहार करते देखोगे, उस समय तुम्‍हें सत्‍ययुग, त्रेता और द्वापर की प्रतीति नहीं होगी। ((10-11)
  • जब तुम देखोगे कि युद्ध में आचार्य द्रोण, शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म, कृपाचार्य, राजा दुर्योधन और सिन्‍धुराज जयद्रथ ज्‍यों ही युद्ध के लिये आगे बढ़े हैं त्‍यों ही सव्‍यसाची अर्जुन ने तुरंत उन सबकी गति रोक दी है, तब तुम हक्‍के-बक्‍के से रह जाओगे और उस समय तुम्‍हें सत्‍ययुग, त्रेता और द्वापर कुछ भी सूझ नही पड़ेगा। (12-13)
  • जब युद्धस्‍थ्‍ाल में अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रहार प्रगाढ़ अवस्‍था को पहुँच जायगा [1] और शत्रुवीरों के रथ को नष्‍ट-भ्रष्‍ट करने वाले महाबली माद्रीकुमार नकुल–सहदेव दो गजराजों की भाँति धृतराष्ट्र पुत्रों की सेना को क्षुब्‍ध करने लगेंगे तथा जब तुम अपनी आँखों से यह अवस्‍था देखोगे, उस समय तुम्‍हारे सामने न सत्‍ययुग होगा, न त्रेता और न द्वापर ही रह जायेगा। (14-15)
  • कर्ण! तुम यहाँ से जाकर आचार्य द्रोण, शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म और कृपाचार्य से कहना कि यह सौम्‍य (सुखद) मास चल रहा है। इसमें पशुओं के लिये घास और जलाने के लिये लकड़ी आदि वस्‍तुएँ सुगमता से मिल सकती हैं। (16)
  • ‘सब प्रकार की औषधियों तथा फल-फूलों से वन की समृद्धि बढ़ी हुई है, धान के खेतों में खूब फल लगे हुए हैं, मक्खियाँ बहुत कम हो गयी हैं, धरती पर कीचड़ का नाम नहीं हैं। जल स्‍वच्‍छ एवं सुस्‍वादु प्रतीत होता है, इस सुखद समय में न तो अधिक गर्मी है और न अधिक सर्दी ही, यह मार्गशीर्ष मास चल रहा है। (17)
  • ‘आज से सातवें दिन के बाद अमावास्‍या होगी। उसके देवता इन्‍द्र कहे गये हैं। उसी में युद्ध आरम्‍भ किया जाय।' (18)
  • इसी प्रकार जो युद्ध के लिये यहाँ पधारे हैं, उन समस्‍त राजाओं से भी कह देना ‘आप लोगों के मन में जो अभिलाषा है, वह सब मैं अवश्‍य पूर्ण करूँगा।’ (19)
  • दुर्योधन के वश में रहने वाले जितने राजा और राजकुमार है, वे शस्‍त्रों द्वारा मृत्‍यु को प्राप्‍त होकर उत्तम गति लाभ करेंगे। (20)
इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत भगवद्यानपर्वमें कर्ण के द्वारा अपने अभिप्राय निवेदन के प्रसंग में भगवद्वाक्‍यविषयक एक सौ बयालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जोर-जोर से होने लगेगा

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