चतुःसप्तत्यधिकशततम (174) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: चतुःसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
राजन! इसी समय जटासुर का बलवान पुत्र योद्धाओं में श्रेष्ठ एक राक्षस अलम्बुष दुर्योधन के पास आकर इस प्रकार बोला- ‘दुर्योधन! यदि तुम्हारी आज्ञा हो तो मैं तुम्हारे विख्यात शत्रु रणदुर्भद पाण्डवों का उनके सेवकों सहित वध करना चाहता हूँ। ‘मेरे पिता जटासुर राक्षसों के अगुआ थे। उन्हें पूर्वकाल में इन नीच कुन्ती कुमारों ने राक्षस-विनाशक कर्म करके मार गिराया। ‘राजेन्द्र! मैं शत्रुओं के रक्त और मांस द्वारा पिता की पूजा करके उनके वध का बदला लेना चाहता हूँ। आप इसके लिये मुझे आज्ञा दें’। तब राजा दुर्योधन ने अत्यन्त प्रसन्न होकर बारबार उससे कहा- ‘वीरवर! द्रोणाचार्य और कर्ण आदि के साथ मिलकर मैं स्वयं ही तुम्हारे शत्रुओं का वध करने में समर्थ हूँ। तुम तो मेरी आज्ञा से घटोत्कच के पास जाओ और युद्ध में उसे मार डालो। वह क्रूरकर्मा निशाचर मनुष्य और राक्षस दोनों के अंश से उत्पन्न हुआ है। ‘हाथियों, घोड़ों तथा रथों का विनाश करने वाला आकाशचारी राक्षस घटोत्कच सदा पाण्डवों के हित में तत्पर रहता है। तुम युद्ध में उसे मारकर यमलोक भेज दो’। जटासुर के पुत्र का नाम अलम्बुष था। उस विशालकाय राक्षस ने दुर्योधन से ‘तथास्तु’ कहकर भीमसेन के पुत्र घटोत्कच को ललकारा और उसके ऊपर नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा आरम्भ कर दी। जैसे आँधी बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अकेले हिडिम्बाकुमार घटोत्कच ने अलम्बुष, कर्ण तथा उस दुर्लंघ्य कौरव सेना को भी मथ डाला। राक्षस अलम्बुष ने घटोत्कच का मायाबल देखकर उसके ऊपर तुरंत ही नाना प्रकार के बाणसमूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। उस महाबली निशाचर ने भीमसेन कुमार को बहुत से बाणों द्वारा घायल करके अपने बाणसमूहों से पाण्डव सेना को खदेड़ना आरम्भ किया। भारत! उसके खदेड़े हुए पाण्डव सैनिक हवा के उड़ाये हुए बादलों के समान उस निशीथकाल में चारों ओर बिखर गये।। राजन! इसी प्रकार घटोत्कच के बाणों से छिन्न-भिन्न हुई आपकी सेना भी सहस्रों मशालें फेंककर आधी रात के समय सब ओर भाग चली। तब क्रोध में भरे हुए अलम्बुष ने उस महासमर में भीमसेन कुमार घटोत्कच को दस बाणों से घायल कर दिया, मानो महावतने महान गजराज को अंकुशों से मार दिया हो। यह देख अत्यन्त भयंकर गर्जना करते हुए घटोत्कच ने अलम्बुष के सारथि, घोड़ों और सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों को तिल-तिल करके काट डाला। तत्पश्चात जैसे मेघ मेरु पर्वत पर जल की वर्षा करता है, उसी प्रकार उसने भी कर्ण पर, अन्यान्य सहस्रों कौरव योद्धाओं पर तथा अलम्बुष पर भी बाण समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। उस राक्षस से पीड़ित हुई सम्पूर्ण चतुरंगिणी कौरव सेना विक्षुब्ध हो उठी और आपस में ही एक-दूसरे को नष्ट करने लगी। महाराज! उस समय सारथि के मारे जाने पर रथहीन हुए अलम्बुष ने रणभूमि में कुपित हो घटोत्कच को बड़े जोर से मुक्का मारा। उसके मुक्के की मार खाकर घटोत्कच उसी प्रकार काँप उठा, जैसे भूकम्प होने पर वृक्ष, तृण और गुल्मों सहित पर्वत हिलने लगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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