मेरु पौराणिक भूगोल में शायद उत्तर मेरु[1] के निकट स्थित एक पर्वत का नाम है। इसी को संभवत: 'सुमेरु' कहा गया है[2]-
'भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतं हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज'[3]
- महाभारत के वर्णन के अनुसार निषध पर्वत के उत्तर और मध्य में मेरु पर्वत की स्थिति है।
- मेरु के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगवान पर्वत हैं, जो पूर्व और पश्चिम समुद्र तक फैले हुए हैं।
- इस पर्वत को 'महामेरु' नाम से भी अभिहित किया गया है[2]-
'स ददर्श महामेरुं शिखराणां प्रभं महत्, तं कांचनमयं दिव्यं चतुर्वर्ण दुरासदम्, आयतं शतसाहस्रं योजनानां तु सुस्थितम्, ज्वलन्तंमचं मेरुं तेजोराशिमनुत्तमम्' महाभारत, सभापर्व 28, दाक्षिणापत्य पाठ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उत्तरी साइबेरिया
- ↑ 2.0 2.1
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 758 |
- ↑ विष्णु पुराण 2, 2, 12.
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