चतुर्दश (14) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-25 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! तदनन्तर अर्जुन ने झुकी हुई गांठ वाले बाणों द्वारा आपकी उस सेना को उसी प्रकार ढक दिया, जैसे मेघ पानी वर्षा से पर्वत को आच्छादित कर देता है। समरभूमि में अर्जुन के नाम से अंकित बाणों की चोट खाते हुए कौरव सैनिक उन्हें उसी रूप में देखते हुए सब कुछ अर्जुनमय ही मानने लगे। अर्जुनरूपी महान अग्नि क्रोध से प्रज्वलित हुई बाणमयी ज्वालाएं फैलाकर धनुष की टंकार रूपी वायु से प्रेरित आपके सैन्यरूपी ईधन को शीघ्रतापूर्वक जलाना आरम्भ किया। भारत! महाभाग! अर्जुन के रथ के भागों में धरती पर गिरते हुए रथ के पहियों, जूओं, तरकसों, पताकाओं, ध्वजों, रथों, हरसों, अनुकर्षो, त्रिवेणु नाम काष्ठों, धुरों, रस्सियों, चाबुकों, कुण्डल और पगड़ी धारण करने वाले मस्तकों, भुजाओं, कंधों, छत्रों, व्यजनों और मुकुटों के ढेर-के-ढेर दिखायी देने लगे। प्रजानाथ! कुपित हुए अर्जुन के रथ के मार्ग की भूमि पर मांस और रक्त की कीच जम जाने के कारण वहाँ चलना-फिरना असम्भव हो गया। भरतश्रेष्ठ! वह रणभूमि रुद्रदेव के क्रीड़ास्थल (श्मशान) की भाँति कायरों के मन में भय उत्पन्न करने वाली और शूरवीरों का हर्ष बढ़ाने वाली थी। शत्रुओं को संताप देनेवाले पार्थ समरांगण में आवरणसहित दो सहस्र रथों का संहार करके धूमरहित प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। राजन! जैसे चराचर जगत को दग्ध करके भगवान अग्नि देव धूमरहित देखे जाते हैं, उसी प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन भी देदीप्यमान हो रहे थे। संग्रामभूमि में पाण्डुपुत्र अर्जुन का वह पराक्रम देखकर द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने अत्यन्त ऊँची पताका वाले रथ के द्वारा आकर उन्हें रोका। वे दोनों ही मनुष्यों में व्याघ्र के समान पराक्रमी थे और दोनों ही धनुर्धरों में श्रेष्ठ समझे जाते थे। उस समय परस्पर वध की इच्छा से दोनों ही एक दूसरे के साथ भिड़ गये। महाराज! भरतश्रेष्ठ! जैसे वर्षा ऋतु में दो मेघखण्ड पानी बरसा रहे हों, उसी प्रकार उन दोनों के बाणों की वहाँ अत्यन्त भयंकर वर्षा होने लगी। जैसे दो सांड परस्पर सींगों से प्रहार करते हैं, उसी प्रकार आपस में लाग-डाँट रखने वाले वे दोनों वीर झुकी हुई गांठ वाले बाणों द्वारा एक-दूसरे को क्षत-विक्षत करने लगे। महाराज! बहुत देर तक तो उन दोनों का युद्ध एक-सा चलता रहा। फिर उनमें वहाँ अस्त्र-शस्त्रों का घोर संघर्ष आरम्भ हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज