महाभारत आदि पर्व अध्याय 153 श्लोक 1-18

त्रिपंचाशदधिकशततम (153) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: त्रिपंचाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


हिडिम्‍बा का कुन्‍ती आदि से अपना मनोभाव प्रकट करना तथा भीमसेन के द्वारा हिडिम्‍बासुर का वध

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! जागने पर हिडिम्बा का अलौकिक रुप देख वे पुरुषसिंह पाण्‍डव माता कुन्ती के साथ बड़े विस्‍मय में पड़े। तदनन्‍तर कुन्‍ती ने उसकी रुप-सम्‍पत्ति से चकित हो उसकी ओर देखकर उसे सान्त्‍वना देते हुए मधुर वाणी में इस प्रकार धीरे-धीरे पूछा- ‘देव कन्‍याओं की सी कान्ति वाली सुन्‍दरी! तुम कौन हो और किसकी कन्‍या हो? तुम किस काम से यहाँ आती हो और कहाँ से तुम्‍हारा शुभागमन हुआ है? यदि तुम इस वन की देवी अथवा अप्‍सरा हो तो वह सब मुझे ठीक-ठीक बता दो; साथ ही यह भी कहो कि किस काम के लिये यहाँ खड़ी हो?

हिडिम्‍बा बोली- देवि! यह जो नील मेघ के समान विशाल वन आप देख रही हैं, यह राक्षस हिडिम्‍बा का और मेरा निवास स्‍थान है। महाभागे! आप मुझे उस राक्षसराज हिडिम्ब की बहिन समझें। आर्ये। मेरे भाई ने मुझे आपकी और आपके पुत्रों की हत्‍या करने की इच्‍छा से भेजा था। उसकी बुद्धि बड़ी क्रुरतापूर्ण है। उसके कहने से मैं यहाँ आयी और नूतन सुवर्ण की सी आभा वाले आपके महाबली पुत्र पर मेरी दृष्टि पड़ी। शुभे! उन्‍हें देखते ही समस्‍त प्राणियों के अन्‍त:करण में विचरने वाले कामदेव से प्रेरित होकर मैं आपके पुत्र की वशवर्तिनी हो गयी। तदनन्‍तर मैंने आपके महाबली पुत्र को पति रुप में वरण कर लिया और इस बात के लिये प्रयत्‍न किया कि उन्‍हें (तथा आप सब लोगों को) लेकर यहाँ से अन्‍यत्र भाग चलूं, परंतु आपके पुत्र की स्‍वीकृति न मिलने से मैं कार्य में सफल न हो सकी। मेरे लौटने में देर होती जान वह मनुष्‍यभक्षी राक्षस स्‍वयं ही आपके इन सब पुत्रों को मार डालने के लिये आया। परंतु मेरे प्राणवल्‍लभ तथा आपके बुद्धिमान् पुत्र महात्‍मा भीम उसे बलपूर्वक यहाँ से रगड़ते हुए दूर हटा ले गये हैं।

देखिये, युद्ध में पराक्रम दिखाने वाले वे दोनों मनुष्‍य और राक्षस जोर-जोर से गर्ज रहे हैं और बड़े वेग से गुत्‍थम-गुत्‍थ होकर एक-दूसरे को अपनी ओर खींच रहे हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! हिडिम्‍बा की यह बात सुनते ही युधिष्ठिर उछलकर खड़े हो गये। अर्जुन, नकुल और पराक्रमी सहदेव ने भी ऐसा किया। तदनन्‍तर उन्‍होंने देखा कि वे दोनों प्रचण्‍ड बलशाली सिंहों की भाँति आपस में गुथ गये हैं और अपनी-अपनी विजय चाहते हुए एक-दूसरे को घसीट रहे हैं। एक दूसरे को भुजाओं में भरकर बार-बार खींचते हुए उन दोनों योद्धाओं ने धरती की धूल को दावानल के धूएं के समान बना दिया। दोनों का शरीर पृथ्‍वी की धूल में सना हुआ था। दोनों ही पर्वतों के समान विशालकाय थे। उस समय वे दोनों कुहरे से ढके हुए दो पहाड़ों के समान सुशोभित हो रहे थे। भीमसेन को राक्षस द्वारा पीड़ित देख अर्जुन धीरे-धीरे हंसते हुए से बोले- ‘महाबाहु-भैया भीमसेन! डरना मत! अब तक हम लोग नहीं जानते थे कि तुम भयंकर राक्षस से भिड़कर अत्‍यन्‍त परिश्रम के कारण कष्‍ट पा रहे हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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