अष्टादशाधिकद्विशततम (218) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)
महाभारत: वन पर्व: अष्टादशाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 1-8 का हिन्दी अनुवाद
मार्कण्डेय जी कहते हैं- कुरुकुलधुरन्धर युधिष्ठिर! ब्रह्माजी के जो तीसरे पुत्र अंगिरा हैं, उनकी पत्नी का नाम सुभा है। उसके गर्भ से जो संतानें उत्पन्न हुईं, उनका वर्णन करता हूं, सुनो। राजन्! बृहत्कीर्ति, बृहज्ज्योत, बृहह्ण्रह्मा, बृहन्मना, बृहन्मन्त्र, बृहद्भास तथा बृहस्पति (ये अंगिरा से सुभा के सात पुत्र हुए)। अंगिरा की प्रथम पुत्री का नाम देवी भानुमती है। वह उनकी संतानों में सबसे अधिक रूपवती है; उसके रूप की कहीं तुलना ही नहीं है (भानु अर्थात् सूर्य से युक्त होने के कारण यह दिन की अभिमानिनी है)। अंगिरा मुनि की दूसरी कन्या ‘रागा’ नाम से विख्यात है। उस पर समस्त प्राणियों का विशेष अनुराग प्रकट हुआ था। इसीलिये उसका ऐसा नाम प्रसिद्ध हुआ। (यह रात्रि की अभिमानिनी है)। अंगिरा की तीसरी पुत्री ‘सिनीवाली’ (चतुर्दशीयुक्ता अमावास्या) है, जो अत्यन्त कृश होने के कारण कभी दीखती है और कभी नहीं दीखती है; इसीलिये लोग उसे ‘दृश्यादृश्या’ कहते हैं। भगवान रुद्र उसे ललाट में धारण करते हैं, इस कारण उसे सब लोग ‘रुद्रसुता’ भी कहते हैं। उनकी चौथी पुत्री ‘अर्चिष्मती’ है, (यही पूर्ण चन्द्रमा से युक्त होने के कारण शुद्ध पौर्णमासी कही जाती है) इसकी प्रभा से लोग रात में सब वस्तुओं को स्पष्ट देखते हैं। पांचवीं कन्या ‘हविष्मती’ (प्रतिपदायुक्ता पूर्णिमा ‘राका’) है, जिसके सांनिध्य में हविष्य द्वारा देवताओं का यजन किया जाता है। अंगिरा मुनि की जो छठी पुण्यात्मा कन्या है, उसे ‘महिष्मती’ कहते हैं (यही चतुर्दशीयुक्ता पूर्णिमा है, जिसे ‘अनुमति’ भी कहते हैं। महामते! जो दीप्तिशाली सोमयाग आदि महायज्ञों में प्रकाशित होने के कारण ‘महामती’ नाम से विख्यात है, वह (प्रतिपदायुक्त अमावस्या) अंगिरा मुनि की सातवीं पुत्री कहलाती है। जिस भगवती अमा को देखकर लोग ‘कुहु-कुहु’ ध्वनि कर उठते (चकित हो जाते) हैं, अंगिरा मुनि की वह आठवीं पुत्री ‘कुहू’ नाम से विख्यात है। उसमें चन्द्रमा की एक मात्र कला अत्यन्त सूक्ष्म अंश से शेष रहती है। (यही शुद्ध अमावस्या है)।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमस्यापर्व में आंगिरसोपाख्यान विषयक दो सौ अट्ठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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