महाभारत विराट पर्व अध्याय 30 श्लोक 1-18

त्रिंश (30) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

सुशर्मा के प्रस्ताव के अनुसार त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर त्रिगर्तदेश के राजा महाबली सुशर्मा ने, जो रथियों के समूह का अधिपति था, बड़ी उतावली के साथ अपना यह समयोचित प्रस्ताव उपस्थित किया। उसने कर्ण की ओर दूचाकर दुर्योधन से कहा- ‘प्रभो! पहले मत्स्य तथा शाल्व देश के सैनिकों ने अनेक बार चढ़ाई करके हमें कष्ट दिया है। मत्स्यराज के सेनापति महाबली सूतपुत्र कीचक ने अपने बन्धुओं के साथ बार-बार आक्रमण करके मुझे बलपूर्वक सताया है। ‘मत्स्यनरेश ने बहुत बार अपने बल-पराक्रम से धावा करके मेरे समूचे राष्ट्र को क्लेश पहुँचाया है। पहले बलवान् कीचक ही उनका सेनानायक था। ‘वह दुष्टात्मा बहुत ही क्रूर और क्रोधी था। इस् भूतल पर अपने पराक्रम के लिये उसकी सर्वत्र ख्याति थी। अब व निर्दयी और पापाचारी कीचक गन्धर्वों द्वारा मार डाला गया है। ‘उसके मारे जाने से राजा विराट का घमण्ड चूर-चूर हो गया होगा। अब वे निराधार एवं निरुत्साह हो गये होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। ‘अनध! यदि आपको जचे, तो मेरी राय यह है कि समस्त कौरव वीरों और महामना कर्ण का भी उस देश पर आक्रमण हो।

‘मैं समझता हूँ; इसके लिये उपयुक्त अवसर प्राप्त हुआ है। यह हमारे लिये अत्यन्त आवश्यक कार्य है। हम प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न मत्स्यराष्ट्र पर चढ़ाई करें। ‘राजा विराट के यहाँ नाना प्रकार के रत्न और धन हैं। हम वे सब ले लेंगे और उनके गाँव तथा सम्पूर्ण राष्ट्र का जीतकर आपस में बाँट लेंगे। ‘अथवा उनके यहाँ सहस्रों गौओं के बहुत से समुदाय हैं; अतः बलपूर्वक उनके नगर में उत्पात मचाकर उन समस्त गौओं का अपहरण कर लेंगे। ‘महाराज! कौरवों के साथ संगठित त्रिगर्तदेशीय सैनिकों की सहायता से हम सब मिलकर विराट की गौओं को हर लेंगे। ‘और हम आपास में विभाजन करके उन्हें अपने यहाँ बाँध लेंगे। साथ ही मत्स्यराज के सामर्थ्य को नष्ट करके उसकी सारी सेना को अपने अधीन कर लेंगे। ‘विराट को नीति से वश में करके हम संख से रहेंगे। इससे आप लोगों की सेना और शक्ति की वृद्धि भी होगी; इसमें संशय नहीं है’।

त्रिगर्तराज का यह कथन सुनकर कर्ण ने राजा दुर्योधन से कहा- ‘सुशर्मा ने ठीक कहा है; यह समयोचित होने के साथ ही हमारे लिये हितकारी भी है। ‘इसलिये सेना को सुसज्जित करके उसे कई टुकडि़यों में बाँटकर हम लोग शीघ्र यहाँ से कूच कर दें। अथवा अनध! आपको जैसा ठीक लगे, वैसा करें। ‘अथवा कुरुकुल में सबसे वृद्ध महारे पितामह परम बुद्धिमान् भीष्म, आचार्य द्रोण तथा शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य - ये लो जैसा ठीक समझें, वैसे ही यात्रा करनी चाहिये। ‘आपस में अच्छी तरह सलाह करके हमें राजा विराट को वश में करने के लिये शीघ्र प्रस्थान कर देना चाहिये। पाण्डव लोग धन, बल तथा पौरुष तीनों से हीन हैं, अतः उनसे हमें क्या काम है ? ‘राजन्! वे अत्यन्त अदृश्य (छिपे हुए) हों या यमराज के घर पहुँच गये हों, हमें तो उद्वेगशून्य होकर विराट-नगर की यात्रा करनी चाहिये। वहाँ हम लोग विराट की गौओं को तथा उनके विविध धन-रत्नों को हस्तगत कर लेंगे’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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