महाभारत विराट पर्व अध्याय 40 श्लोक 1-8

चत्वारिंश (40) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-8 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का उत्तर को शमी वृक्ष से अस्त्र उतारने के लिये आदेश

वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय! उस शमी वृक्ष के समीप पहुँचकर अर्जुन ने विराट कुमार उत्तर को सुकुमार तथा युद्ध की कला में पूर्णतश कुशल न जानकर उससे कहा -। ‘उत्तर! मेरी आज्ञा से तुम शीघ्र इस वृक्ष पर चढ़कर वहाँ रक्खे हुए धनुष उतारो, क्योंकि तुम्हारे ये धनुष मेरे बाहुबल को नहीं सह सकेंगे, कोई भारी कार्य भार नहीं उठा सकेंगे अथवा बड़े बड़े गजराजों का नाश करने में भी ये काम न दे सकेंगे। इतना ही नहीं, यहाँ शत्रुओं पर विजय पाने के लिये युद्ध करते समय ये मेरे बाहु विक्षेप को भी नहीं सँभाल सकेंगे। ‘शत्रुओं को संताप देने वाले महाबाहु उत्तर! तुम्हारे ये सभी अस्त्र शस्त्र अत्यन्त सूक्ष्म, छोटे और कोमल हैं। इनके द्वारा यहाँ विजय दिलाने वाला पराक्रम नहीं किया जा सकता। इसलिये भूमिंजय!

पत्तों से सुशोभित इस शमी वृक्ष पर शीघ्र चढ़ जाओ। ‘राजा युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन और नकुल - सहदेव - इन सब पाण्डवों के धनुष रक्खे हुए हैं। ‘उन शूरवीरों के ध्वज, बाण और दिव्य कवच भी यश्हीं हैं। यहीं अर्जुन का महान् शक्तिशाली गाण्डीव धनुष भी है, जो अकेला ही एक लाख धनुषों के समान है। यह राष्ट्र की वृद्धि करने वाला, परिश्रम को सहने में समर्थ और ताड़के समान अत्यन्त विशाल है। ‘सम्पूर्ण आयुधों में यह सबसे बड़ा है और शत्रुओं को विशेष पीड़ा देने वाला है। यह सोने को गलाकर बनाया हुआ, दिव्य, सुन्दर, विस्तृत तथा व्रण रहित ( नित्य नूतन ) है। यह भारी से भारी भार वहन करने में समर्थ, भयंकर और देखने में मनोहर है। ऐसे ही युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल -सहदेव के भी सब धनुष प्रबल और सुदृढ़ हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर दिशा की ओर से गौओं के अपहरण के प्रसंग में अर्जुन के अस्त्र- शस्त्र वर्णन विषयक चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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