महाभारत वन पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-19

सप्तचत्वारिंश (47) अध्‍याय: वन पर्व (इन्द्रलोकाभिगमन पर्व)

Prev.png

महाभारत: वन पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


लोमश मुनि का स्वर्ग में इन्द्र और अर्जुन से मिलकर उनका संदेश ले काम्यकवन में आना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! एक समय की बात है, महर्षि लोमश इधर-उधर घूमते हुए इन्द्र से मिलने की इच्छा लेकर स्वर्गलोक में गये। उन महामुनि ने देवराज इन्द्र से मिलकर उन्हें नमस्कार किया और देखा, पाण्डुनन्दन अर्जुन इन्द्र के आधे सिंहासन पर बैठे हैं। तदनन्तर इन्द्र की आज्ञा से एक उत्तम सिंहासन पर, जहाँ ऊपर कुश का आसन बिछा हुआ था, महर्षियों से पूजित द्विजवर लोमश जी बैठे। इन्द्र के सिंहासन पर बैठे हुए कुन्तीकुमार अर्जुन को देखकर लोमश जी के मन में एक विचार हुआ कि ‘क्षत्रिय होकर भी कुन्तीकुमार ने इन्द्र का आसान कैसे प्राप्त कर लिया? इनका पुण्य-कर्म क्या है? इन्होंने किन-किन लोकों पर विजय पायी है? जिस पुण्य के प्रभाव से इन्होंने यह देववन्दित स्थान प्राप्त किया है?'

लोमश मुनि के संकल्प को जानकर वृ़त्रहन्ता शचीपति इन्द्र ने हंसते हुए उनसे कहा- ‘ब्रह्मर्षे! आपके मन में जो प्रश्न उठा है, उसका समधान कर रहा हूं, सुनिये। ये अर्जुन मानव योनि में उत्पन्न हुए केवल मरणधर्मा मनुष्य नहीं हैं। महर्षे! ये महाबाहु धनंजय कुन्ती के गर्भ से उत्पन्न मेरे पुत्र हैं और कुछ कारणवश अस्त्र-विद्या सीखने के लिये यहाँ आये हैं। आश्चर्य है कि आप इन पुरातन ऋषिप्रवर को नहीं जानते हैं। ब्रह्मन्! इनका जो स्वरूप है और इनके अवतार-ग्रहण का जो कारण है, वह सब मैं बता रहा हूं, आप मेरे मुंह से यह बात सुनिये। नर-नारायण नाम से प्रसिद्ध जो पुरातन मुनीश्वर हैं, वे ही श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतीर्ण हुए हैं, यह बात आप जान लें। तीनों लोकों में विख्यात नर-नारायण ऋषि ही देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये पुण्य के आधाररूप भूतल पर अवतीर्ण हुए हैं। देवता अथवा महात्मा महर्षि भी जिसे देखने में समर्थ नहीं, वह बदरी नाम से विख्यात पुण्यतीर्थ इनका आश्रम है, वहीं पूर्वकाल में श्रीकृष्ण और अर्जुन का (नारायण और नर का) निवास स्थान था। जहाँ से सिद्ध-चारणसेवित गंगा का प्राकट्य हुआ है।

ब्रह्मर्षे! ये दोनों महातेजस्वी नर और नारायण मेरे अनुरोध से पृथ्वी पर उत्पन्न हैं। इनकी शक्ति महान् है, ये दोनों इस पृथ्वी का भार उतारेंगे। इन दिनों निवातकवच नाम से प्रसिद्ध कुछ असुरगण बड़े उद्दण्ड हो रहे हैं, वे वरदान से मोहित होकर हमारा अनिष्ट करने में लगे हुए हैं। उनमें बल तो है ही, बली होने का अभिमान भी है। वे देवताओं को मार डालने के विचार करते हैं। देवताओं को तो वे लोग कुछ गिनते ही नहीं; क्योंकि उन्हें वैसा ही वरदान प्राप्त हो चुका है। वे महाबली भयंकर दानव पाताल में निवास करते हैं। सम्पूर्ण देवता मिलकर भी उसके साथ युद्ध नहीं कर सकते। इस समय भूतल पर जिनका अवतार हुआ है, वे श्रीमान् मधुसूदन विष्णु ही कपिल नाम से प्रसिद्ध देवता हुए हैं। वे ही भगवान् अपराजित हरि हैं। महर्षे! पूर्वकाल में रसातल को खोदने वाले सगर के महामना पुत्र उन्हीं कपिल की दृष्टिपात पड़ने से भस्म हो गये थे।'

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः