षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: वन पर्व (इन्द्रलोकाभिगमन पर्व)
महाभारत: वन पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 57-63 का हिन्दी अनुवाद
इन्द्र के ऐसा कहने पर शत्रु वीरों का संहार करने वाले अर्जुन को बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर तो उन्हें शाप की चिंता छूट गयी। पाण्डुपुत्र धनंजय महायशस्वी गन्धर्व चित्रसेन के साथ स्वर्गलोक में सुखपूर्वक रहने लगे। जो मनुष्य पाण्डुनन्दन अर्जुन के इस चरित्र को प्रतिदिन सुनता है, उसके मन में पापपूर्ण विषय भोगों की इच्छा नहीं होती। देवराज इन्द्र के पुत्र अर्जुन के इस अत्यन्त दुष्कर पवित्र चरित्र को सुनकर मद, दम्भ तथा विषयासक्ति आदि दोषों से रहित श्रेष्ठ मानव स्वर्गलोक में जाकर वहाँ सूखपूर्वक निवास करते हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत इन्द्रलोकाभिगमनपर्व में उर्वशीशाप नामक छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|