महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 337 श्लोक 1-17

सप्तत्रिंशदधिकत्रिशततम (337) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तत्रिंशदधिकत्रिशततम अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


यज्ञ में आहुति के लिये अज का अर्थ अन्न है, बकरा नहीं - इस बात को जानते हुए भी पक्षपात करने के कारण राजा उपरिचर के अधःपतन की और भगवत्कृपा से उपके पुनरुत्थान की कथा।

युधिष्ठिर ने पूछा - पितामह! राजा वसु जब भगवान् के अत्यन्त भक्त और महान् पुरुष थे, तब वे स्वर्ग से भ्रष्ट होकर पाताल में कैसे प्रविष्ट हुए।

भीष्मजी ने कहा - भरतनन्दन! इस विषय में ज्ञानीजन ऋषियों और देवताओं के संवादरूप इस प्राचीन इतिहास को उद्धृत किसया करते हैं।‘अज के द्वारा यज्ञ करना चाहिये- ऐसा विधान है’। ऐसा कहकर देवताओं ने वहाँ आये हुए सभी श्रेष्ठ ब्रह्मर्षियों से कहा, ‘यहाँ अज का अर्थ बकरा समझना चाहिये? दूसरा पशु नहीं, ऐसा निश्चय है’।

ऋषियों ने कहा - देवताओं! यज्ञों में बीजांे द्वारायजन करना चाहिये, ऐसी वैदिकी श्रुति है। बीजों का ही नाम अज है; अतः बकरे का वध करना हमें उचित नहीं है। देवताओं! जहाँ कहीं भी यज्ञ मे पशु का वध हो, वह सत्पुरुषों का धर्म नहीं है। यह श्रेष्ठ सत्ययुग चल रहा है। इसमें पशु का वध कैसे किया जा सकता है ?

भीष्मजी कहते हैं - राजन्! इस प्रकार जब ऋषियों का देवताओं के साथ संवाद चल रहा था, उसी समय नृपश्रेष्ठ वसु भी उस मार्ग से अस निकले और उस स्थान पर पहुँच गये। श्रीमान् राजा उपरिचर अपनी सेना और वाहनों के साथ आकाश मार्ग से चलते थे। उन अन्तरिक्षचारी वसु को सहसा आते देख ब्रह्मर्षियों ने देवताओं से कहा - ‘ये नरेश हम लोगों का संदेह दूर कर देंगे; क्योंकि ये यज्ञ करने वाले, दानपति, श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण भूतों के हितैषी एव्र प्रिय है। ‘ये महान् पुरुष वसु शास्त्र केविपरीत वचन कैसे कह सकते हैं।’ ऐसी सम्मति करके देवताओं और ऋषियों ने एक साथ राजा वसु के पास जाकर अपना प्रश्न उपस्थित किया- ‘राजन्! किसके द्वारा यज्ञ करना चाहिये , बकरे के द्वारा अथवा अन्न द्वारा ? हमारे इस संदेह का आप निवारण करें। हम लोगों की राय में आप ही प्रामाणिक व्यक्ति हैं’। तब राजा वसु ने हाथ जोड़कर उन सबसे पूछा - ‘विप्रवरों! आप लोग सच-सच बलाइये, आप लोगों में से किस पक्ष को कौन-सा मत अभीष्ट है , कौन अज का अर्थ बकरा मानता है और कौन अन्न ?

ऋषि बोले - नरेश्वर! हम लोगों का पक्ष यह है कि अन्न के द्वारा यज्ञ करना चाहिये तथा देवताओं का पक्ष यह है कि छाग नामक पशु के द्वारा यज्ञ होना चाहिये। राजन्! अब आप हमें अपना निर्णय बताइये।

भीष्मजी कहते हैं - राजन्! देवताओं का मत जानकर राजा वसु ने उन्हीं का पक्ष लेकर कह दिया कि अज का अर्थ है, छाग (बकरा); अतः उसी के द्वारा यज्ञ करना चाहिये। यह सुनकर वे सभी सूर्य के समान तेजस्वी ऋषि कुपित हो उठे और विमान पर बैठकर देवपक्ष की बात कहने वाले वसु से बोले -‘राजन्! तुमने यह जानकर भी कि अज का अर्थ अन्न है,

देवताओं का पक्ष लिया है; इसलिये स्वर्ग से नीचे गिर जाओ। आज से तुम्हारी आकाश में विचरने की शक्ति नष्ट हो गयी। हमारे शाप के आघात से तुम पृथ्वी को भेदकर पाताल में प्रवेश करोगे। ‘नरेश्वर! तुमने यदि वेद और सूत्रों के विरुद्ध कहा हो तो हमारा यह शाप अवश्य लागू हो और यदि हम शास्त्र विरुद्ध वचन कहते हों तो हमारा पतन हो जाय’।। राजन!! ऋषियों के इनता कहते ही उसी क्षण राजा उपरिचर आकाश से नीचे आ गये और ततकाल पृथ्वी के विवर मे चले गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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