महाभारत आदि पर्व अध्याय 175 श्लोक 1-19

पंचसप्‍तत्‍यधिकशततम (175) अध्‍याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व:पंचसप्‍तत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


शक्ति के शाप से कल्‍माषवाद का राक्षस होना, विश्वामित्र की प्ररेणा से राक्षस द्वारा वसिष्ठ के पुत्रों का भक्षण और वसष्ठि का शोक

गन्‍धर्व कहता है- अर्जुन! इक्ष्‍वाकुवंश में एक राजा हुए, जो लोक में कल्‍माषपाद के नाम से प्रसिद्ध थे। इस पृथ्‍वी पर वे एक असाधारण तेजस्‍वी राजा था। एक दिन वे नगर से निकलकर वन में हिंसक पशुओं को मारने के लिये गये। वहाँ वे रिपुमर्दन नरेश वराहों और अन्‍य हिंसक पशुओं को मारते हुए इधर-उधर विचरने लगे। उस महाभयानक वन में उन्‍होंने बहुत-से गैंड़े भी मारे। बहुत देर तक हिंस्र पशुओं को मारकर जब राजा थक गये, तब वहाँ से नगर की ओर लौटे। प्रतापी विश्वामित्र उन्‍हें अपना यजमान बनाना चाहते थे। राजा कल्‍माषपाद युद्ध में कभी पराजित नहीं होते थे। उस दिन वे भूख-प्‍यास से पीड़ित थे और ऐसे तंग रास्‍ते पर आ पहुँचे थे, जहाँ एक ही आदमी आ-जा सकता था। वहाँ आने पर उन्‍होंने देखा, सामने की ओर से मुनिश्रेष्‍ठ महामना वसिष्ठकुमार आ रहे हैं। वे वसिष्ठ जी के वंश की वृद्धि करने वाले महाभाग शक्ति‍ थे। महात्‍मा वसिष्ठ जी के सौ पुत्रों में सबसे बड़े वे ही थे।

उन्‍हें देखकर राजा ने कहा- हमारे रास्‍ते से हट जाओ। तब शक्ति मुनि ने मधुर वाणी में उन्‍हें समझाते हए कहा- महाराज! मार्ग तो मुझे ही मिलना चाहिये। यही सनातन धर्म है। सभी धर्मों में राजा के लिये वही उचित है कि वह ब्राह्मण को मार्ग दे। इस प्रकार वे दोनों आपस में रास्‍ते के लिये वाग्‍युद्ध करने लगे। एक कहता, तुम हटो तो दूसरा कहता, नहीं, तुम हटो। इस प्रकार वे उत्‍तर-प्रत्‍युत्‍तर करने लगे। ऋषि तो धर्म के मार्ग में स्थित थे, अत: वे रास्‍ता छोड़कर नहीं हटे। उधर राजा भी मान और क्रोध के वशीभूत हो मुनि के मार्ग से इधर-उधर नहीं हट सके। राजाओं में श्रेष्‍ठ कल्‍माषपाद ने मार्ग न छोड़ने वाले शक्ति मुनि के ऊपर मोहवश राक्षस की भाँति कोड़े से आघात किया। कोड़े की चोट खाकर मुनिश्रेष्ठ शक्ति ने क्रोध से मूर्च्छित हो उन उत्‍तम नरेश को शाप दे दिया।

तपस्‍या की प्रबल शक्ति से सम्‍पन्‍न शक्ति मुनि ने कहा- राजाओं में नीच कल्‍माषपाद! तू एक तपस्‍वी ब्राह्मण को राक्षस की भाँति मार रहा है, इसलिये आज से नरभक्षी राक्षस हो जायगा तथा अब से तू मनुष्‍यों के मांस में आसक्‍त होकर इस पृथ्‍वी पर विचरता रहेगा। नृपाधम! जा यहाँ से। उन्‍हीं दिनों यजमान के लिये विश्वामित्र और वसिष्ठ में वैर चल रहा था। उस समय विश्वामित्र राजा कल्‍माषपाद के पास आये। अर्जुन! जब राजा तथा ऋषिपुत्र दोनों इस प्रकार विवाद कर रहे थे, उग्रतपस्‍वी प्रतापी विश्वामित्र मुनि उनके निकट चले गये। तदनन्‍तर नृपश्रेष्ठ कल्‍माषपाद ने वसिष्ठ के समान तेजस्‍वी वसिष्ठ मुनि के पुत्र उन महर्षि शक्ति को पहचाना। भारत! तब विश्वामित्र ने भी अपने को अदृश्‍य करके अपना प्रिय करने की इच्‍छा से राजा और शक्ति दोनों को चकमा दिया। जब शक्ति ने शाप दे दिया, तब नृपशिरोमणि कल्‍माषपाद उनकी स्‍तुति करते हुए उन्‍हें प्रसन्‍न करने के लिये उनके शरण होने चले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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