महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 138 श्लोक 1-11

अष्टत्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


पाँच प्रकार के दानों का वर्णन

(दूसरे दिन प्रातःकाल) युधिष्ठिर ने पूछा- सत्यव्रती और पराक्रमसम्पन्न तात! दानजनित महान धर्म के प्रभाव से जो-जो नरेश स्वर्गलोक में गये हैं, उन सबका परिचय मैंने आपके मुख से सुना है।

धर्मात्माओं में श्रेष्ठ पितामह! अब मैं दान के सम्बन्ध में इन धर्मों को सुनना चाहता हूँ कि दान के कितने भेद हैं? और जो दान दिया जाता है, उसका क्या फल मिलता है? कैसे और किन लोगों को धर्म के अनुसार दान देना अभीष्ट है? किन कारणों से देना चाहिये? और दान के कितने भेद हो जाते हैं? यह सब मैं यथार्थ रूप से सुनना चाहता हूँ।

भीष्म जी ने कहा- निष्पाप कुन्तीकुमार! भरतनन्दन! दान के सम्बन्ध में मैं यथार्थ रूप से जो कुछ कहता हूँ, सुनो। सभी वर्णों के लोगों को दान किस प्रकार करना चाहिये- यह बता रहा हूँ।

भारत! धर्म, अर्थ, भय, कामना और दया- इन पाँच हेतुओं से दान को पाँच प्रकार का जानना चाहिये। अब जिन कारणों से दान देना उचित है, उनको सुनो।

दान करने वाला मनुष्य इहलोक में कीर्ति और परलोक में सर्वोत्तम सुख पाता है। इसलिये ईर्ष्यारहित होकर मनुष्य ब्राह्मणों को अवश्य दान दे (यह धर्ममूलक दान है)। ‘ये दान देते हैं, ये दान देंगे अथवा इन्होंने मुझे दान दिया है’, याचकों के मुख से ये बातें सुनकर अपनी कीर्ति की इच्छा से प्रत्येक याचक को उसकी इच्छा के अनुसार सब कुछ देना चाहिये (यह अर्थ मूलक दान है)।

‘न मैं इसका हूँ न यह मेरा है तो भी यदि इसको कुछ न दूँ तो अपमानित होकर मेरा अनिष्ट कर डालेगा।’ इस भय से ही विद्वान पुरुष जब किसी मूर्ख को दान दे तो यह भयमूलक दान है।

‘यह मेरा प्रिय है और मैं इसका प्रिय हूँ’, यह विचार कर बुद्धिमान मनुष्य आलस्य छोड़कर अपने मित्र को प्रसन्नतापूर्वक दान दे (यह कामनामूलक दान है)।

‘यह बेचारा बड़ा गरीब है और मुझसे याचना कर रहा है। थोड़ा देने से भी संतुष्ट हो जायगा।’ यह सोचकर दरिद्र मनुष्य के लिये सर्वथा दयावश दान देना चााहिये। यह पाँच प्रकार का दान पुण्य और कीर्ति को बढ़ाने वाला है। यथाशक्ति सबको दान देना चाहिये। ऐसा प्रजापति का कथन है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में एक सौ अड़तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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