महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 106 श्लोक 1-20

षडधिकशततम (106) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


भीष्म के द्वारा पराजित पाण्डव सेना का पलायन और भीष्म को मारने के लिये उद्यत हुए श्रीकृष्ण को अर्जुन का रोकना।


संजय कहते हैं- महाराज! तब आपके ताऊ देवव्रत कुपित हो रणभूमि में अपने तीखे एवं श्रेष्ठ सायकों द्वारा सेना सहित कुन्तीकुमारों को सब ओर से घायल करने लगे। उन्होंने भीमसेन को बारह, सात्यकि को नौ, नकुल को तीन और सहदेव को सात बाणों से घायल करके राजा युधिष्ठिर की दोनों भुजाओं और छाती में बारह बाण मारे। तदनन्तर धृष्टद्युम्न को भी अपने बाणों द्वारा बींध कर महाबली भीष्म ने सिंह के समान गर्जना की। तब नकुल ने बारह, सात्यकि ने तीन, धृष्टद्युम्न ने सत्तर, भीमसेन ने सात तथा युधिष्ठिर ने बारह बाण मारकर पितामह भीष्म को घायल कर दिया। द्रोणाचार्य ने यमदण्ड के समान भयंकर एवं तीखे पाँच-पाँच बाणों द्वारा सात्यकि और भीमसेन से प्रत्येक को घायल किया। पहले सात्यकि को चोट पहुँचाकर फिर भीमसेन पर गहरा आघात किया। तब उन दोनों ने भी अंकुशों से महान गजराज के समान सीधे जाने वाले तीन-तीन बाणों द्वारा ब्राह्मणप्रवर द्रोणाचार्य को घायल करके तुरंत बदला चुकाया। सौवीर, कितव, प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिवि और वसाति देश के योद्धा शत्रुओं के तीखे बाणों से पीड़ित होने पर भी संग्रामभूमि में भीष्म को छोड़कर नहीं भागे।

इसी प्रकार विभिन्न देशों से आये हुए अन्य भूपाल भी हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिये पाण्डवों पर आक्रमण करने लगे। राजन! पाण्डवों ने भी पितामह भीष्म को घेर लिया। चारों ओर से रथसमूहों द्वारा घिरे हुए अपराजित वीर भीष्म गहन वन में लगायी गई आग के समान शत्रुओं को दग्ध करते हुए प्रज्वलित हो उठे। रथ ही उनके लिये अग्निशाला के समान था, धनुष ज्वालाओं के समान प्रकाशित होता था, खड्ग, शक्ति और गदा आदि अस्त्र-शस्त्र समिधा का काम कर रहे थे। बाण चिनगारियों के समान थे। इस प्रकार भीष्मरूपी अग्नि वहाँ क्षत्रिय शिरोमणियों को दग्ध करने लगी। उन्होंने स्वर्णभूषित गृध्र-पंखयुक्त तेज बाणों तथा कर्णी, नालीक और नाराचों द्वारा पाण्डवों की सेना को आच्छादित कर दिया। तीखे बाणों से ध्वजों को काट डाला और रथियों को भी मार गिराया। ध्वजाएँ काटकर उन्होंने रथ समूहों को मुण्डित तालवनों के समान कर दिया।

राजन! युद्धस्थल में समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महाबाहु भीष्म ने बहुत से रथों, हाथियों ओर घोड़ों को मनुष्यों से रहित कर दिया। उनके धनुष की प्रत्यंचा की टंकार ध्वनि वज्र की गड़गड़ाहट के समान जान पड़ती थी। भारत! उसे सुनकर समस्त प्राणी काँप उठते थे। भरतश्रेष्ठ! आपके ताऊ भीष्म के बाण कभी खाली नहीं जाते थे। राजन! भीष्म के धनुष से छूटे हुए बाण कवचों में नहीं अटकते थे (उन्हें छिन्न-भिन्न करके भीतर घुस जाते थे)। महाराज! हमने समरांगण में ऐसे बहुत से रथ देखे, जिनके रथी और सारथि तो मार दिये गये थे; परंतु वेगशाली घोड़ों से जुते हुए होने के कारण वे इधर-उधर खींचकर ले जाये जा रहे थे। चेदि, काशि और करूष देश के चौदह हजार विख्यात महारथी थे। वे उच्च कुल में उत्पन्न होकर पाण्डवों के लिये अपना शरीर निछावर कर चुके थे। उनमें से कोई भी युद्ध में पीठ दिखाने वाला नहीं था। उन सबकी ध्वजाएँ सोने की बनी हुई थी। मुँह बाये हुए काल के समान भीष्म जी के सामने पहुँचकर वे सब के सब महारथी युद्धरूपी समुद्र में डूब गये। भीष्म जी ने घोड़े, रथ, और हाथियों सहित उन सबको परलोक का पथिक बना दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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