महाभारत आदि पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-20

चतुर्विंश (24) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: चतुर्विंश अध्‍याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
गरुड़ के द्वारा अपने तेज और शरीर का संकोच तथा सूर्य के क्रोधजनित तीव्र तेज की शांति के लिये अरुण का उनके रथ पर स्थित होना

उग्रश्रवा जी कहते हैं- शौनकादि महर्षियों! देवताओं द्वारा की हुई स्तुति सुनकर गरुड़ जी ने स्वयं भी अपने शरीर की ओर दृष्टिपात किया और उसे संकुचित कर लेने की तैयारी करने लगे। गरुड़ ने कहा- देवताओं! मेरे इस शरीर को देखने से संसार के समस्त प्राणी उस भयानक स्वरूप से उद्विग्न होकर डर न जायँ इसलिये मैं अपने तेज को समेट लेता हूँ। उग्रश्रवा जी कहते हैं- तदनन्तर इच्छानुसार चलने तथा रुचि के अनुसार पराक्रम प्रकट करने वाले पक्षी गरुड़ अपने भाई अरुण को पीठ पर चढ़ाकर पिता के घर से माता के समीप महासागर के दूसरे तट पर आये। जब सूर्य ने अपने भयंकर तेज के द्वारा सम्पूर्ण लोकों को दग्ध करने का विचार किया, उस समय गरुड़ जी महान तेजस्वी अरुण को पुनः पूर्ण दिशा में लाकर सूर्य के समीप रख आये।

रुरु ने पूछा- पिता जी! भगवान सूर्य ने उस समय सम्पूर्ण लोकों को दग्ध कर डालने का विचार क्यों किया? देवताओं ने उनका क्या हड़प लिया था, जिससे उनके मन में क्रोध का संचार हो गया? प्रमति ने कहा- अनघ! जब राहु अमृत पी रहा था, उस समय चन्द्रमा और सूर्य ने उसका भेद बता दिया; इसीलिये उसने चन्द्रमा और सूर्य से भारी बैर बाँध लिया और उन्हें सताने लगा। राहु से पीड़ित होने पर सूर्य के मन में क्रोध का आवेश हुआ। वे सोचने लगे, ‘देवताओं के हित के लिये ही मैंने राहु का भेद खोला था जिससे मेरे प्रति राहु का रोष बढ़ गया। अब उसका अत्यन्त अनर्थकारी परिणाम दुःख के रूप में अकेले मुझे प्राप्त होता है। संकट के अवसरों पर मुझे अपना कोई सहायक ही नहीं दिखायी देता। देवता लोग मुझे राहु से ग्रस्त होते देखते हैं तो भी चुपचाप सह लेते हैं। अतः सम्पूर्ण लोकों का विनाश करने के लिये निःसंदेह मैं अस्ताचल पर जाकर वहीं ठहर जाऊँगा।’ ऐसा निश्चय करके सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये। और वहीं से सूर्यदेव ने सम्पूर्ण जगत का विनाश करने के लिये सबको संताप देना आरम्भ किया।

तब महर्षिगण देवताओं के पास जाकर इस प्रकार बोले- ‘देवगण! आज आधी रात के समय सब लोकों को भयभीत करने वाला महान दाह उत्पन्न होगा, जो तीनों लोकों का विनाश करने वाला हो सकता है।' तदनन्तर देवता ऋषियों को साथ ले ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले- 'भगवन! आज यह कैसा महान दाहजनित भय उपस्थित होना चाहता है? अभी सूर्य नहीं दिखायी देते तो भी ऐसी गरमी प्रतीत होती है मानो जगत का विनाश हो जायेगा। फिर सूर्योदय होने पर गरमी कैसी तीव्र होगी, यह कौन कह सकता है?’ ब्रह्मा जी ने कहा- ये सूर्यदेव आज सम्पूर्ण लोकों का विनाश करने के लिये ही उद्यत होना चाहते हैं। जान पड़ता है, ये दृष्टि में आते ही सम्पूर्ण लोकों को भस्म कर देंगे। किन्तु उनके भीषण संताप से बचने का उपाय मैंने पहले से ही कर रखा है। महर्षि कश्यप के एक बुद्धिमान पुत्र हैं, जो अरुण नाम से विख्यात हैं। उनका शरीर विशाल है। वे महान तेजस्वी हैं। वे ही सूर्य के आगे रथ पर बैठेंगे। उनके सारथि का कार्य करेंगे और उनके तेज का भी हरण करेंगे। ऐसा करने से सम्पूर्ण लोकों, ऋषि-महर्षियों तथा देवताओं का भी कल्याण होगा। प्रमति कहते हैं- तत्पश्चात पितामह ब्रह्मा जी की आज्ञा से अरुण ने उस समय सब कार्य उसी प्रकार किया। सूर्य अरुण से आवृत होकर उदित हुए। वत्स! सूर्य के मन में क्यों क्रोध का अवेश हुआ था, इस प्रश्न के उत्तर में मैंने ये सब बातें कही हैं। शक्तिशाली अरुण ने सूर्य के सारथि का कार्य क्यों किया, यह बात भी इस प्रसंग में स्पष्ट हो गयी है। अब अपने पूर्व कथित दूसरे प्रश्न का पुनः उत्तर सुनो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अंतर्गत आस्तीक पर्व में गरुड़चरितविषयक चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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