महाभारत सभा पर्व अध्याय 52 श्लोक 1-22

द्विपन्चाशत्तम (52) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: द्विपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर को भेंंट में मिली हुई वस्तुओं का दुर्योधन द्वारा वर्णन

दुर्योधन बोला- अनघ! राजाओं द्वारा युधिष्ठिर के यज्ञ के लिये दिये हुए जिस महान् धन का संग्रह वहाँ हुआ था, वह अनेक प्रकार का था। मैं उसका वर्णन करता हूँ, सुनिये। मेरु और मंदराचल के बीच में प्रवाहित होने वाली शैलोदा नदी के दोनों तटों पर छिद्रों में वायु के भर जाने से वेणु की तरह बजने वाले बाँसों की रमणीय छाया में जो लोग बैठते और विश्राम करते हैं, वे खस, एकासन, अर्ह, प्रदर, दीर्घवेण, पारद, पुलिन्द, तंगण और परतंगण आदि नरेश भेंट में देने के लिये पिपीलिकाओं (चींटियों) द्वारा निकाले हुए 'पिपीलिक' नाम वाले सुवर्ण के ढेर के ढेर उठा लाये थे। उसका माप द्रोण से किया जाता था। इतना ही नहीं, वे सुन्दर काले रंग के चँवर तथा चन्द्रमा के समान श्वेत दूसरे चामर एवं हिमालय के पुष्पों से उत्पन्न हुआ स्वादिष्ट मधु भी प्रचुर मात्रा में लाये थे। उत्तरकुरु देश से गंगाजल और माला के योग्य रत्न तथा उत्तर कैलास से प्राप्त हुई अतीव बलसम्पन्न ओषधियाँ एवं अन्य भेंट की सामग्री साथ लेकर आये हुए पर्वतीय भूपालगण अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर के द्वार पर रोके जाकर विनीतभाव से खड़े थे। पिता जी! मैंने देखा कि जो राजा हिमालय के परार्ध भाग में निवास करते हैं, जो दायगिरि के निवासी हैं, जो समुद्रतटवर्ती करूष देश में रहते हैं तथा जो लौहित्यपर्वत के दोनों और वास करते हैं, फल और मूल ही जिनका भोजन है, वे चर्म वस्त्रधारी क्रूरतापूर्वक शास्त्र चलाने वाले और क्रूर कर्मा किरात नरेश भी वहाँ भेंट लेकर आये थे।

राजन्! चन्दन और अगुरुकाष्ट तथा कृष्णागुरु कोष्ठ के अनेक भार, चर्म, रत्न, सवुर्ण तथा सुगन्धित पदार्थों की राशि और दस हजार किरात देशीय दासियाँ, सुन्दर-सुन्दर पदार्थ, दूर देशों के मृग और पक्षी तथा पर्वतों से संगृहित तेजस्वी सुवर्ण एवं सम्पूर्ण भेंट सामग्री लेकर आये हुए राजा लोग द्वार पर जाने के कारण खड़े थे। किरात, दरद, दर्व, शूर, यमक, औदुम्बर, दुर्विभाग, पारद, वाह्विक, काश्मीर, कुमार, घोरक, हंसकायन, शिवि, त्रिगर्त, यौधेय, भद्र, केकय, अम्बष्ठ, कौकुर, तार्क्ष्य, वस्त्रप, पह्वव, वशातल, मौलेय, क्षुद्रक, मालव, शौण्डिक, कुक्कर, शक, अंग, वंग, पुण्ड, शाणवत्य तथा गाय- ये उत्तम कुल में उत्पन्न श्रेष्ठ एवं शस्त्रधारी क्षत्रिय राजकुमार सैकड़ों की संख्या में पंक्तिबद्ध खड़े होकर अजातशत्रु युधिष्ठिर को बहुत धन अर्पित कर रहे थे। भारत! वंग, कलिंग, मगध, ताम्रलिप्त, पुण्डक, दौवालिक, सागरक, पत्रोर्ण, शैशव तथा कर्णप्रवारगण आदि बहुत से क्षत्रिय नरेश वहाँ दरवाजे पर खड़े थे तथा राजाज्ञा से द्वारपालगण उन सबको यह संदेश देते थे कि आप लोग अपने लिये समय निश्चित कर लें।

फिर उत्तम भेंट सामग्री अर्पित करें। इसके बाद आप लोगों को भीतर जाने का मार्ग मिल सकेगा। तदनन्तर एक-एक क्षमाशील और कुलीन राजा ने काम्यक सरोवर के निकट उत्पन्न हुए एक-एक हजार हाथियों की भेंट देकर द्वार के भीतर प्रवेश किया। उन हाथियों के दाँत हलदण्ड के समान लंबे थे। उनको बाँधने की रस्सी सोने की बनी हुई थी। उन हाथियों का रंग कमल के समान सफेद था। उनकी पीठ पर झूल पड़ा हुआ था। वे देखने में पर्वताकार और उन्मत्त प्रतीत होते थे। ये तथा और भी बहुत से भूपालगण अनेक दिशाओं से भेंट लेकर आये थे। दूसरे-दूसरे महामना नरेशों ने भी वहाँ रत्नों की भेंट अर्पित की थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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