सप्तत्यधिकशततम (170) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! उस समय धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य की छाती में तुरंत ही पाँच बाण मारे और सिंह के समान गर्जना की। भरतनन्दन! तब द्रोणाचार्य ने युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न को पच्चीस बाणों से घायल करके एक दूसरे भल्ल के द्वारा उनके घोर टंकार करने वाले धनुष को काट दिया। भरतश्रेष्ठ! द्रोणाचार्य के द्वारा घायल किये हुए धृष्टद्युम्न ने रोषपूर्वक अपने ओठ को दाँतों से दबा लिया और उस टूटे हुए धनुष को तुरंत फेंक दिया। महाराज! तदनन्तर क्रोध से भरे हुए प्रतापी धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का विनाश करने की इच्छा से दूसरा श्रेष्ठ धनुष हाथ में ले लिया। फिर शत्रुवीरों का संहार करने वाले उस पांचाल वीर ने उस विचित्र धनुष को कानों तक खींचकर उसके द्वारा द्रोणाचार्य का अन्त करने में समर्थ एक भयंकर बाण छोड़ा। उस महासमर में बलवान वीर के द्वारा छोड़ा हुआ वह घोर बाण उदित हुए सूर्य के समान उस सेना को प्रकाशित करने लगा। राजन! समरभूमि में उस भयंकर बाण को देखकर देवता, गन्धर्व और मनुष्य सभी कहने लगे कि ‘द्रोणाचार्य का कल्याण हो’। नरेश्वर! आचार्य के रथ की ओर आते हुए उस बाण के कर्ण ने सिद्धहस्त योद्धा की भाँति बारह टुकडे़ कर डाले। संजय बोले- राजन! धनुर्धर सूतपुत्र के द्वारा अनेक टुकड़ों में कटा हुआ वह बाण विषहीन भुजंग के समान तुरंत पृथ्वी पर गिर पड़ा। तदनन्तर धृष्टद्युम्न को कर्ण ने दस, अश्वत्थामा ने पाँच और स्वयं द्रोण ने सात बाण मारे। फिर शल्य ने दस, दुःशासन ने तीन, दुर्योधन ने बीस और शकुनि ने पाँच बाणों से उन्हें घायल कर दिया। राजन! इस प्रकार सभी महारथियों ने बड़ी उतावली के साथ पांचाल राजकुमार पर अपने-अपने बाणों का प्रहार किया। उस महासमर में द्रोणाचार्य की रक्षा के लिये सात वीरों द्वारा घायल किये जाने पर भी धृष्टद्युम्न ने बिना किसी घबराहट के उन सबको तीन-तीन बाणों से बींध डाला। फिर द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कर्ण तथा आपके पुत्र दुर्योधन को भी घायल कर दिया। उन धनुर्धरवीर धृष्टद्युम्न के बाणों से क्षत-विक्षत हो उन सभी योद्धाओं ने युद्धस्थल में पुनः उन्हें पाँच-पाँच बाणों से शीघ्र ही बींध डाला। प्रत्येक महारथी ने उन पर प्रहार किया था। राजन! उस समय द्रुमसेन ने अत्यन्त कुपित होकर एक बाण से धृष्टद्युम्न को बींध डाला। फिर तुरंत ही अन्य तीन बाणों से उन्हें घायल करके कहा- ‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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