महाभारत आदि पर्व अध्याय 102 श्लोक 1-14

द्वयधिकशततम (102) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वयधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


भीष्‍म के द्वारा स्‍वयंवर से काशिराज की कन्‍याओं का हरण, युद्ध में सब राजाओं तथा शाल्‍व की पराजय, अम्बिका और अम्‍बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह तथा निधन

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! चित्रांगद के मारे जाने पर दूसरे भाई विचित्रवीर्य अभी बहुत छोटे थे, अत: सत्यवती की राय से भीष्‍म जी ने ही उस राज्‍य का पालन किया। जब विचित्रवीर्य धीरे-धीरे युवावस्‍था में पहुँचे, तब बुद्धिमानों में श्रेष्‍ठ भीष्‍म जी ने उनकी वह अवस्‍था देख विचित्रवीर्य के विवाह पर विचार किया। राजन! उन दिनों काशिराज की तीन कन्‍याएं थीं, जो अप्‍सराओं के समान सुन्‍दर थीं। भीष्‍म जी ने सुना, वे तीनों कन्‍याएं साथ ही स्‍वयंवर सभा में पति का वरण करने वाली हैं। तब माता सत्‍यवती की आज्ञा से रथियों में श्रेष्‍ठ शत्रुविजयी भीष्‍म एकमात्र रथ के सा‍थ वाराणसी पुरी को गये। वहाँ शान्‍तनुनंदन भीष्‍म ने देखा, सब ओर से आये हुए राजओं का समुदाय स्‍वयंवर सभा में जुटा हुआ है और कन्‍याएं भी स्‍वयंवर में उपस्थित हैं। उस समय सब ओर राजाओं के नाम ले-लेकर उन सबका परिचय दिया जा रहा था। इतने में ही शान्‍तनुनंदन भीष्‍म, जो अब वृद्ध हो चले थे, वहाँ अकेले ही आ पहुँचे। उन्‍हें देखकर वे सब परमसुन्‍दरी कन्‍याएं उद्विग्न सी होकर, ये बूढे़ हैं, ऐसा सोचती हुए वहाँ से दूर भाग गयीं। वहाँ जो नीच स्‍वभाव के नरेश एकत्र थे, वे आपस में ये बातें करते हुए उनकी हंसी उड़ाने लगे- ‘भरतवंशियों में श्रेष्ठ भीष्‍म तो बड़े धर्मात्‍मा सुने जाते थे। ये बूढ़े हो गये हैं, शरीर में झुर्रियां पड़ गयी हैं, सिर के बाल सफेद हो चुके हैं; फि‍र क्‍या कारण है कि यहाँ आये हैं? ये तो बड़े निर्लज्ज जान पड़ते हैं। अपनी प्रतिज्ञा झूठी करके ये लोगों में क्‍या कहेंगे- कैसे मुंह दिखायेंगे? भूमण्‍डल में व्‍यर्थ ही यह बात फैल गयी कि भीष्‍म जी ब्रह्मचारी हैं।

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! क्षत्रियों की ये बातें सुनकर भीष्‍म अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे। राजन्! वे शक्तिशाली तो थे ही, उन्‍होंने उस समय स्‍वयं ही समस्‍त कन्‍याओं का वरण किया। इतना ही नहीं, प्रहार करने वालों में श्रेष्ठ वीरवर भीष्‍म ने उन कन्‍याओं को उठाकर रथ पर चढ़ा लिया और समस्‍त राजाओं को ललकारते हुए मेघ के समान गम्‍भीर वाणी में कहा- ‘विद्वानों ने कन्‍या को यथाशक्ति वस्त्राभूषणों से विभूषित करके गुणवान् वर को बुलाकर उसे कुछ धन देने के साथ ही कन्‍यादान करना उत्तम (ब्राह्म विवाह) बताया है। कुछ लोग एक जोड़ा गाय और बैल लेकर कन्‍यादान करते हैं (यह आर्ष विवाह है)। कितने ही मनुष्‍य नियत धन लेकर कन्‍यादान करते हैं (यह आसुर विवाह है) कुछ लोग बल से कन्‍या का हरण करते हैं (यह राक्षस विवाह है)। दूसरे लोग वर और कन्‍या की परस्‍पर अनुमति होने पर विवाह करते हैं (यह गान्‍धर्व विवाह है) कुछ लोग अचेत अवस्‍था में पड़ी हुई कन्‍या को उठा ले जाते हैं (यह पैशाच विवाह है)। कुछ लोग वर और कन्‍या को एकत्र करके स्‍वयं ही उनसे प्रतिज्ञा कराते हैं कि हम दोनों गार्हस्‍थ्‍य धर्म का पालन करेंगे; फि‍र कन्‍या पिता दोनों की पूजा करके अलंकारयुक्त कन्‍या का वर के लिये दान करता है; इस प्रकार विवाहित होने वाले (प्राजापत्‍य विवाह की रीति से) पत्नी की उपलब्धि करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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