एकनवतितम (91) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? (याद है न, तुमने द्रौपदी से कहा था) कष्णे' पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी दूसरे पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदी को निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? कर्ण! फिर राज्य में लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पांडवों को दुबारा जुए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता। पुष्कर ने राजा नल को जूए में जीत लिया था; किंतु उन्होंने अपने ही पराक्रम से पुनः अपने राज्य और यश दोनों को प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार लोभशून्य पाण्डव भी अपनी भुजाओं के बल से सम्पूर्ण सगे-सम्बन्धियों के साथ रहकर समरांगण में बढे़-चढे़ शत्रुओं का संहार करके फिर अपना राज्य प्राप्त करेंगे। निश्चय ही ये सोमकों के साथ अपने राज्य पर अधिकार कर लेंगे। पुरुषसिंह पाण्डव सदैव अपने धर्म से सुरक्षित हैं; अतः इनके द्वारा अवश्य धृतराष्ट्र के पुत्रों का नाश हो जायगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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