महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-18

एकोनत्रिंश (29) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और भगदत्त का युद्ध, श्रीकृष्‍ण द्वारा भगदत्त के वैष्‍णवास्‍त्र से अर्जुन की रक्षा तथा अर्जुन द्वारा हाथी सहित भगदत्त का वध

  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा– संजय! उस समय क्रोध में भरे हुए पाण्‍डुकुमार अर्जुन ने भगदत्त का और भगदत्त ने अर्जुन का क्‍या किया? यह मुझे ठीक-ठीक बताओ। (1)
  • संजय ने कहा– राजन! भगदत्त से युद्ध में उलझे हुए श्रीकृष्‍ण और अर्जुन दोनों को समस्‍त प्राणियों ने मौत की दाढ़ों में पहुँचा हुआ ही माना। (2)
  • शक्तिशाली महाराज! हाथी की पीठ से भगदत्त रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्‍ण और अर्जुन पर निरन्‍तर बाणों की वर्षा कर रहे थे। (3)
  • उन्‍होंने धनुष को पूर्ण रूप से खींचकर छोड़े हुए लोहे के बने और शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख युक्‍त बाणों से देवकीपुत्र श्रीकृष्‍ण को घायल कर दिया। (4)
  • भगदत्त के चलाये हुए अग्नि के स्‍पर्श के समान तीक्ष्‍ण और सुन्‍दर पंख वाले बाण देवकी पुत्र श्रीकृष्‍ण के शरीर को छेदकर धरती में समा गये। (5)
  • तब अर्जुन ने राजा भगदत्त का धनुष काटकर उनके परिवार को मार डाला और उन्‍हें लाड़ लड़ाते हुए-से उनके साथ युद्ध आरम्‍भ किया। (6)
  • भगदत्त ने सूर्य की किरणों के समान तीखे चौदह तोमर चलाये, परंतु सव्‍यसाची अर्जुन ने उसमें से प्रत्‍येक के दो-दो टुकड़े कर डाले। (7)
  • तब इन्‍द्रकुमार ने भारी बाण-वर्षा के द्वारा उस हाथी के कवच को काट डाला, जिससे कवच जीर्ण-शीर्ण होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। (8)
  • कवच कट जाने पर हाथी को बाणों के आघात से बड़ी पीड़ा होने लगी। वह खून की धारा से नहा उठा और बादलों से रहित एवं[1] जल धारा से भीगे हुए गिरिराज के समान शोभा पाने लगा। (9)
  • तब भगदत्त ने वसुदेवनन्‍दन श्रीकृष्‍ण को लक्ष्‍य करके सुवर्णमय दण्‍ड से युक्‍त लोहमयी शक्ति चलायी। परंतु अर्जुन ने उसके दो टुकड़े कर डाले। (10)
  • तदनन्‍तर अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा राजा भगदत्त के छत्र और ध्‍वजा को काटकर मुसकराते हुए दस बाणों द्वारा तुरंत ही उन पर्वतेश्‍वर को बींध डाला। (11)
  • अर्जुन के कंकपत्रयुक्‍त सुन्‍दर पाँख वाले बाणों द्वारा अत्‍यन्‍त घायल हो राजा भगदत्त उन पाण्‍डुपुत्र पर कुपित हो उठे। (12)
  • उन्‍होंने श्‍वेतवाहन अर्जुन के मस्‍तक पर तोमरों का प्रहार किया और जोर से गर्जना की। उन तोमरों ने समरभूमि में अर्जुन के किरीट को उलट दिया। (13)
  • उलटे हुए किरीट को ठीक करते हुए पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने भगदत्त से कहा– 'राजन! अब इस संसार को अच्‍छी तरह देख लो।' (14)
  • अर्जुन के ऐसा कहने पर भगदत्त ने अत्‍यन्‍त कुपित हो एक तेजस्‍वी धनुष हाथ में लेकर श्रीकृष्‍ण सहित अर्जुन पर बाणों की वर्षा प्रारम्‍भ कर दी। (15)
  • अर्जुन ने उसके धनुष को काटकर उनके तूणीरों के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर तुरंत ही बहत्तर बाणों से उनके सम्‍पूर्ण मर्मस्‍थानों में गहरी चोट पहुँचायी। (16)
  • उन बाणों से घायल हो अत्‍यन्‍त पीड़ित होकर भगदत्त ने वैष्णवास्त्र प्रकट किया। उसने कुपित हो अपने अंकुश को ही वैष्‍णवास्‍त्र से अभिमन्त्रित करके पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन की छाती पर छोड़ दिया। (17)
  • भगदत्त का छोड़ा हुआ अस्त्र सबका विनाश करने वाला था। भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को ओट में करके स्‍वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली। (18)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गैरिकमिश्रित

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