चतुरधिकशततम (104) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर ने कहा- पितामह! शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य की आयु सौ वर्षों की होती है। वह सैकड़ों प्रकार की शक्ति लेकर जन्म धारण करता है। किंतु देखता हूँ कि कितने ही मनुष्य बचपन में ही मर जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? मनुष्य किस उपाय से दीर्घ आयु होता है अथवा किस कारण से उसकी आयु कम हो जाती है? क्या करने से वह कीर्ति पाता है और क्या करने से उसे संपत्ति की प्राप्ति होती है? पितामह! मनुष्य, मन, वाणी अथवा शरीर के द्वारा तप, ब्रह्मचर्य, जप, होम तथा ओषध आदि में से किसका आश्रय ले, जिससे वह श्रेय का भागी हो, वह मुझे बताइये। भीष्मी जी ने कहा- युधिष्ठिर! तुम मुझसे जो पूछ रहे हो, इसका उत्तर देता हूँ। मनुष्य जिस कारण से अल्पायु होता है, जिस उपाय से दीर्घ आयु होता है, जिससे वह कीर्ति और संपत्ति का भागी होता है तथा जिस बर्ताव से पुरुष को श्रेय का संयोग प्राप्त होता है, वह सब बताता हूँ, सुनो। सदाचार से ही मनुष्य को आयु की प्राप्ति होती है, सदाचार से ही वह संपत्ति पाता है तथा सदाचार से ही उसे इहलोक और परलोक में भी कीर्ति की प्राप्ति होतीहै। दुराचारी पुरुष, जिससे समस्त प्राणी डरते और तिरस्कृत होते हैं, इस संसार में बड़ी आयु नहीं पाता। अत: यदि मनुष्य अपना कल्याण चाहता हो तो उसे इस जगत में सदाचार का पालन करना चाहिये। जिसका सारा शरीर ही पापमय है, वह भी यदि सदाचार का पालन करे तो वह उसके शरीर और मन के बुरे लक्षणों को दबा देता है। सदाचार ही धर्म का लक्षण है। सच्चरित्रता ही श्रेष्ठ पुरुषों की पहचान है। श्रेष्ठ पुरुष जैसा बर्ताव करते हैं; वही सदाचार का स्वरूप अथवा लक्षण है। जो मनुष्य धर्म का आचरण करता है और लोक कल्याण के कार्य में लगा रहता है, उसका दर्शन न हुआ हो तो भी मनुष्य केवल नाम सुनकर उससे प्रेम करने लगते हैं। जो नास्तिक, क्रियाहीन, गुरु और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले, धर्म को न जानने वाले और दुराचारी हैं, उन मनुष्यों की आयु क्षीण हो जाती है। जो मनुष्य शीलहीन, सदा धर्म की मर्यादा भंग करने वाले तथा दूसरे वर्ण की स्त्रियों के साथ सम्पर्क रखने वाले हैं; वे इस लोक में अल्पायु होते और मरने के बाद नरक में पड़ते हैं। सब प्रकार के शुभ लक्षणों से हीन होने पर भी जो मनुष्य सदाचारी, श्रद्धालु और दोषदृष्टि से रहित होता है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है। जो क्रोधहीन, सत्यवादी किसी भी प्राणी की हिंसा न करने वाला, अदोषदर्शी और कपटशून्य है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है। जो ढेले फोड़ता है, तिनके तोड़ता, नख चबाता तथा सदा ही उच्छिष्ट (अशुद्ध) एवं चंचल रहता है, ऐसे कुलक्षणयुक्त मनुष्य को दीर्घायु नहीं प्राप्त होती। प्रतिदिन ब्राह्म मुहूर्त में (अर्थात सूर्योदय से दो घड़ी पहले) जागे तथा धर्म और अर्थ विषय में विचार करे। फिर शैय्या से उठकर शौच-स्नान के पश्चात आचमन करके हाथ जोड़े हुए प्रात:काल की संध्या करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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