पच्चचत्वारिंशदधिकद्विशततम (245) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: पच्चचत्वारिंशदधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 1-25 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर दिव्यास्त्रों से सम्पन्न सुवर्ण मालाधारी गन्धर्वों ने तेजोमय बाणों की वर्षा करते हुए चारों ओर से पाण्डवों को घेर लिया। राजन्! वीर पाण्डव केवल चार थे, परंतु उस रणभूमि में हजारों गन्धर्व उन पर एक साथ टूट पड़े थे। यह एक अद्भुत सी बात थी। गन्धर्वों नें जैसे कर्ण तथा दुर्योधन दोनों के रथों को छिन्न-भिन्न करके उनके सैकड़ों टुकड़े कर दिये थे, उसी प्रकार वे पाण्डवों के रथों को भी टूक-टूक कर देने की चेष्टा में लग गये। राजन्! रणभूमि में सैकड़ों गन्धर्वों को अपने ऊपर आक्रमण करते देख नरश्रेष्ठ पाण्डवों ने बार-बार बाणों की झड़ी लगाकर उन सबको रोक दिया। सब ओर से बाणों की वर्षा का लक्ष्य होने के कारण वे आकाशचारी गन्धर्व पाण्डवों के समीप जाने का साहस न कर सके। उस समय गन्धर्वों को क्रोध में भरे हुए देख अर्जुन ने भी कुपित होकर महान् दिव्यास्त्रों का प्रयोग आरम्भ किया। वे अत्यन्त बलवान थे। उन्होंने उस युद्ध में आग्नेयास्त्र-का प्रयोग करके दस लाख गन्धर्वों को यमलोक पहुँचा दिया। राजन्! इसी प्रकार बलवानों में श्रेष्ठ महाधनुर्धर भीमसेन ने अपने तीक्ष्ण सायकों द्वारा सैकड़ों गन्धर्वों को मार गिराया। उत्कट बलशाली माद्रीकुमार नकुल और सहदेव ने भी युद्ध में तत्पर हो सैकड़ों शत्रुओं को आगे से पकड़कर मार डाला। महारथी पाण्डवों के चलाये दिव्यास्त्रों की मार खाकर गन्धर्व धृतराष्ट्र के पुत्रों को लिये-दिये आकाश में उड़ गये। कुन्तीनन्दन अर्जुन ने उन्हें आकाश में उड़ते देख चारों ओर बाणों का विस्तृत जाल-सा फैलाकर गन्धर्वों को घेरे में डाल दिया। उस जाल में वे उसी प्रकार बंध गये, जैसे पिंजड़े में पक्षी। अत: वे अत्यन्त कुपित होकर अर्जुन पर गदा, शक्ति और ऋष्टि आदि अस्त्र-शस्त्रों आदि की वर्षा करने लगे। तब उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता अर्जुन ने उनकी गदा, शक्ति तथा ऋष्टि आदि अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा का निवारण करके भल्ल नामक बाणों द्वारा गन्धर्वों के अंगों पर आघात करने लगे। गन्धर्वों के मस्तक, बाहु तथा पैर कट-कटकर इस प्रकार गिरने लगे, मानो पत्थरों की वर्षा हो रही हो। इससे शत्रुओं को बड़ा भय होने लगा। महात्मा पाण्डुनन्दन अर्जुन के बाणों से घायल होकर आकाश में स्थित हुए गान्धर्वों ने पृथ्वी पर पड़े हुए अर्जुन पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ की। तेजस्वी परन्तप सव्यसाची ने अपने अस्त्रों द्वारा गन्धर्वों की बाण वर्षा का निवारण करके उन्हें फिर से घायल कर दिया। कुरुकुल का आनन्द बढ़ाने वाले अर्जुन ने स्थूणाकर्ण, इन्द्रजाल, सौर, आग्नेय तथा सौम्य नामक दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया। कुन्तीकुमार के उन सायकों से गन्धर्व उसी प्रकार दग्ध होने लगे, जैसे इन्द्र के बाणों द्वारा दैत्य। इससे उनको बड़ा विषाद हुआ। जब वे ऊपर की ओर उड़ने लगते, तब अर्जुन के बाणों के जाल से उनकी गति रुक जाती थी और जब इधर-उधर भागने लगते, तब सव्यसाची अर्जुन के भल्ल नामक बाण उन्हें आगे बढ़ने से रोकते थे। भारत! इस प्रकार कुन्तीकुमार के द्वारा गन्धर्वों को त्रस्त हुआ देख गन्धर्वराज चित्रसेन ने गदा लेकर सव्यसाची अर्जुन पर आक्रमण किया। हाथ में गदा लिये बड़े वेग से युद्ध के लिये आते हुए चित्रसेन की उस गदा के, जो सब की सब लोहे की बनी हुई थी, अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा सात टुकड़े कर दिये। वेगशाली अर्जुन के बाणों से अपनी गदा के अनेक टुकड़े हुए देख चित्रसेन अन्तर्धान विद्या द्वारा अपने आपको छिपाकर उन पाण्डुकुमार के साथ युद्ध करने लगे। उस समय उन्होंने जिन-जिन दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया, उन सबको वीर अर्जुन ने अपने दिव्य अस्त्रों द्वारा शान्त कर दिया। महात्मा अर्जुन के उन अस्त्रों से रोके जाने पर बलबान गन्धर्वराज माया से अदृश्य हो गये। उन्हें अदृश्य होकर प्रहार करते देख अर्जुन ने दिव्य अस्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित किये हुए आकाशचारी बाणों से बींध डाला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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