त्रिषष्टितम (63) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
शत्रुओं को संताप देने वाले माद्रीकुमार नकुल और सहदेव राजा युधिष्ठिर के चक्र रक्षक थे। वे दोनों भी यह सोचकर कर्ण की ओर दौड़े कि यह राजा युधिष्ठिर वध न कर डाले। नकुल और सहदेव दोनों भाई उत्तम प्रयत्न का सहारा लेकर राधापुत्र कर्ण पर पृथक-पृथक बाणों की वर्षा करने लगे। इसी प्रकार प्रतापी सूतपुत्र ने भी तेज धारवाले दो भल्लों द्वारा शत्रुओं का दमन करने वाले उन दोनों महामनस्वी वीरों को घायल कर दिया। जिनकी पूंछ और गर्दन के बल काले तथा शरीर का रंग श्वेत था और जो मन के समान तीव्र वेग से चलने वाले थे, युधिष्ठिर के उन उत्तम घोड़ों को संग्राम भूमि में राधा पुत्र कर्ण ने मार डाला। त्त्पश्चात महाधनुर्धर सूतपुत्र ने हंसते हुए से एक दूसरे भल्ल के द्वारा कुन्तीकुमार के शिरस्त्राण को नीचे गिरा दिया। इसी प्रकार प्रतापी कर्ण ने बुद्धिमान माद्रीकुमार नकुल के भी घोड़ों को मारकर ईषादण्ड और धनुष को भी काट दिया। घोड़ों एवं रथों के नष्ट हो जाने पर अत्यन्त घायल हुए वे दोनों भाई पाण्डव उस समय सहदेव के रथ पर जा चढ़े। शत्रुवीरों का संहार करने वाले मामा मद्रराज शल्य ने उन दोनों भाइयों को रथहीन हुआ देख कृपापूर्वक राधापुत्र कर्ण से कहा ‘कर्ण! आज तुम्हें कुन्तीकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करना है। फिर अत्यन्त रोष में भरकर धर्मराज के साथ किस लिये जूझ रहे हो। ‘इनके अस्त्र शस्त्र और कवच नष्ट हो गये हैं। तीर और तरकस भी कट गये हैं। सारथि और घोड़े भी थके हुए हैं तथा शत्रुओं ने इन्हें अस्त्रों द्वारा आच्छादित कर दिया है। राधानन्दन! अर्जुन के सामने पहुँचकर तुम उपहास के पात्र बन जाओगे’। युद्धस्थल में मद्रराज शल्य के ऐसा कहने पर कर्ण पूर्वत रोष में भरकर युधिष्ठिर को बाणों द्वारा पीड़ित करता रहा। माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल- सहदेव को तीखे बाणों से घायल करके कर्ण ने हंसकर समरांगण में बाणों के प्रहार से युधिष्ठिर को युद्ध से विमुख कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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