महाभारत आदि पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-17

द्वात्रिंश (32) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वात्रिंश (32) अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
गरुड़ का देवताओं के साथ युद्ध और देवताओं की पराजय

उग्रश्रवा जी कहते हैं- 'द्विजश्रेष्ठ! देवताओं का समुदाय जब इस प्रकार भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न हो युद्ध के लिये उद्यत हो गया, उसी समय पक्षिराज गरुड़ तुरन्त ही देवताओं के पास जा पहुँचे। उन अत्यन्त बलवान गरुड़ को देखकर सम्पूर्ण देवता काँप उठे। उनके सभी आयुध आपस में ही आघात-प्रत्याघात करने लगे। वहाँ विद्युत एवं अग्नि के समान तेजस्वी और महापराक्रमी अमेयात्मा भौमन (विश्वकर्मा) अमृत की रक्षा कर रहे थे। वे पक्षिराज के साथ दो घड़ी तक अनुपम युद्ध करके उनके पंख, चोंच नखों से घायल हो उस रणांगण में मृतक तुल्य हो गये।

तदनन्तर पक्षिराज ने अपने पंखों की प्रचण्ड वायु से बहुत धूल उड़ाकर समस्त लोकों में अन्धकार फैला दिया और उसी धूल से देवताओं को ढक दिया। उस धूल से आच्छादित होकर देवता मोहित हो गये। अमृत की रक्षा करने वाले देवता भी इसी प्रकार धूल से ढक जाने के कारण कुछ देख नहीं पाते थे। इस तरह गरुड़ ने स्वर्गलोक को व्याकुल कर दिया और पंखों तथा चोंचों की मार से देवताओं का अंग-अंग विदीर्ण कर डाला। तब सहस्र नेत्रों वाले इन्द्र देव ने तुरन्त ही वायु को आज्ञा दी- ‘मारुत! तुम इस धूल की वृष्टि को दूर हटा दो; क्योंकि यह काम तुम्हारे ही वश का है।'

तब बलवान वायुदेव ने बड़े वेग से उस धूल को दूर उड़ा दिया। इससे वहाँ फैला हुआ अन्धकार दूर हो गया। अब देवता अपने अस्त्र-शस्त्रों द्वारा पक्षी गरुड़ को पीड़ित करने लगे। देवताओं के प्रहार को सहते हुए महाबली गरुड़ आकाश में छाये हुए महामेघ की भाँति समस्त प्राणियों को डराते हुए जोर-जोर से गर्जन करने लगे। शत्रुवीरों का संहार करने वाले पक्षिराज बड़े पराक्रमी थे। वे आकाश में बहुत ऊँचे उड़ गये। उड़कर अन्तरिक्ष में देवताओं के ऊपर (ठीक सिर की सीध में) खड़े हो गये। उस समय कवच धारण किये इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता उन पर पट्टिश, परिघ, शूल और गदा आदि नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा प्रहार करने लगे। अग्नि के समान प्रज्वलित क्षुरप्र, सूर्य के समान उद्भासित होने वाले चक्र तथा नाना प्रकार के दूसरे-दूसरे शस्त्रों के प्रहार द्वारा उन पर सब ओर से मार पड़ रही थी। तो भी पक्षिराज गरुड़ देवताओं के साथ तुमुल युद्ध करते हुए तनिक भी विचलित न हुए।

परमप्रतापी विनतानन्दन गरुड़ ने मानो देवताओं को दग्ध कर डालेंगे, इस प्रकार रोष में भरकर आकाश में खड़े-खड़े ही पंखों और छाती के धक्के से उन सबको चारों ओर मार गिराया। गरुड़ से पीड़ित और दूर फेंके गये देवता इधर-उधर भागने लगे। उनके नखों और चोंच से क्षत-विक्षत हो वे अपने अंगों से बहुत सा रक्त बहाने लगे। पक्षिराज से पराजित हो साव्य और गन्धर्व पूर्व दिशा की ओर भाग चले। वसुओं तथा रुद्रों ने दक्षिण दिशा की शरण ली। आदित्यगण पश्चिम दिशा की ओर भागे तथा अश्विनी कुमारों ने उत्तर दिशा का आश्रय लिया। ये महापराक्रमी योद्धा बार-बार पीछे की ओर देखते हुए भाग रहे थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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