महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 87 श्लोक 1-13

सप्ताशीतितम (87) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्ताशीतितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद
राष्ट्र की रक्षा तथा वृद्धि के उपाय


युधिष्ठिर ने पूछा-भरतश्रेष्ठ नरेश्वर! अब मैं यह अच्छी तरह जानना चाहता हूँ कि राष्ट्र की रक्षा तथा उसकी वृद्धि किस प्रकार हो सकती है, अतः आप इसी विषय का वर्णन करें।

भीष्मजी ने कहा-राजन्! अब मैं बड़े हर्षं के साथ तुम्हें राष्ट्र की रक्षा तथा वृद्धि का सारा रहस्य बता रहा हूँ। तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो। एक गाँव का, दस गाँवो का, बीस गाँवों का, सौ गाँवों तथा हजार गाँवों का अलग-अलग एक-एक अधिपति बनाना चाहिये। गाँव के स्वामी का यह कर्तव्य है कि वह गाँव वालों के मामलों का तथा गाँव में जो-जो अपराध होते हों, उन सबका वही रहकर पता लगावे और उनका पूरा विवरण दस गाँव के अधिपति के पास भेजे। इसी तरह दस गाँवों वाला, बीस गाँव वाले के पास और बीस गाँवों वाला अपने अधीनस्थ जनपद के लोगों का सारा वृतांत सौ गाँवों वाले अधिकारी को सूचित करे। (फिर सौं गाँवों का अधिकारी हजार गाँवों के अधिपति को अपने अधिकृत क्षेत्रों की सूचना भेजें। इसके बाद हजार गाँवों का अधिपति स्वयं राजा के पास जाकर अपने यहाँ आये हुए सभी विवरणों को उसके सामने प्रस्तुत करे)। गाँवों में जो आय अथवा उपज हो, वह सब गाँव का अधिपति अपने ही पास रखे (तथा उसमें से नियत अंश का वेतन के रूप में उपभोग करे)। उसी में से नियत वेतन देकर उसे दस गाँवों के अधिपति का भी भरण-पोषण करना चाहिये, इसी तरह दस गाँव के अधिपति को भी बीस गाँवों के पालक का भरण-पोषण करना उचित हैं। जो सत्कार प्राप्त व्यक्ति सौ गाँवों का अध्यक्ष हो वह एक गाँव की आमदनी को उपभोग में ला सकता है। भरतश्रेष्ठ! वह गाँव बहुत बड़ी बस्ती वाला मनुष्यों से भरपूर और धन-धान्य से सम्पन्न हो। भरतनन्दन! इसका प्रबन्ध राजा के अधीनस्थ अनेक अधिपतियों के अधिकार में रहना चाहिए। सहस्र गाँव का श्रेष्ठ अधिपति एक शाखानगर ( कस्बे )- की आय पाने का अधिकारी है। उस कस्बे में जो अन्न और सुवर्ण की आय हो उसके द्वारा वह इच्छानुसार उपभोग कर सकता है। उसे राष्ट्रवासियों के साथ मिलकर रहना चाहिए। इन अधिपतियों के अधिकार में जो युद्ध सम्बन्धी तथा गाँवों के प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य सौंपे गये हों उनकी देखभाल कोई आलस्यरहित धर्मज्ञ मन्त्री किया करें। अथवा प्रत्येक नगर में एक ऐसा अधिकारी होना चाहिए जो सभी कार्योें का चिंतन और निरीक्षण कर सके जैसे कोई भयंकर ग्रह आकाश में नक्षत्रों के ऊपर स्थित हो परिभ्रमण करता है उसी प्रकार वह अधिकारी उच्चतम स्थान पर प्रतिष्ठित होकर उन सभी सभासद आदि के निकट परिभ्रमण करे और उनके कार्य की जाँच-पड़ताल करता रहे। उस निरीक्षक का कोई गुप्तचर राष्ट्र में घूमता रहे और सभासद् आदि के कार्य एवं मनोभाव को जानकर उसके पास सारा समाचार पहुँचाता रहे। रक्षा के कार्य में नियुक्त हुए अधिकारी लोग प्रायः हिसंक स्वभाव के हो जाते हैं। वे दुसरों की बुराई चाहने लगते हैं और शठतापूर्वक पराये धनका अपहरण कर लेते हैैं ऐसे लोगों से वह सर्वार्थचिन्तक अधिकारी इस सारी प्रजा की रक्षा करें। राजा को माल की खरीद-बिक्री, उसके मँगाने का खर्च, उसमें काम करने वाले नौंकरों के वेतन, बचत और योग -क्षेम के निर्वाह की ओर दृष्टि रखकर ही व्यापारियों पर कर लगाना चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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