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महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
- द्रोणाचार्य का सेनापति के पद पर अभिषेक, कौरव-पाण्डव-सेनाओं का युद्ध और द्रोण का पराक्रम
- द्रोणाचार्य ने कहा– राजन! मैं छहों अगों सहित वेद, मनु जी का कहा हुआ अर्थशास्त्र, भगवान शंकर की दी हुई बाण-विधा और अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र भी जानता हूँ। (1)
- विजय की अभिलाषा रखने वाले तुम लोगों ने मुझमें जो-जो गुण बताये हैं, उन सबको प्राप्त करने की इच्छा से मैं पाण्डवों के साथ युद्ध करूँगा। (2)
- राजन! मैं द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न को युद्धस्थल में किसी प्रकार भी नहीं मारूँगा; क्योंकि वह पुरुषप्रवर धृष्टद्युम्न मेरे ही वध के लिये उत्पन्न हुआ है। (3)
- मैं समस्त सोमकों का संहार करते हुए पाण्डव-सेनाओं के साथ युद्ध करूँगा; परंतु पाण्डव लोग युद्ध में प्रसन्नतापूर्वक मेरा सामना नहीं करेंगे। (4)
- संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार आचार्य द्रोण की अनुमति मिल जाने पर आपके पुत्र दुर्योधन ने उन्हें शास्त्रीय विधि के अनुसार सेनापति के पद पर अभिषिक्त किया। (5)
- तदनन्तर जैसे पूर्वकाल में इन्द्र आदि देवताओं ने स्कन्द को सेनापति के पद पर अभिषिक्त किया था, उसी प्रकार दुर्योधन आदि राजाओं ने भी द्रोणाचार्य का अभिषेक किया। (6)
- उस समय वाद्यों के घोष तथा शंखों की गम्भीर ध्वनि के साथ द्रोणाचार्य के सेनापति बना लिये जाने पर सब लोगों के हृदय में महान हर्ष प्रकट हुआ। (7)
- पुण्याहवाचन, स्वस्तिवाचन, सूत, मागध और वन्दीजनों के स्तोत्र, गीत तथा श्रेष्ठ ब्राह्मणों के जय-जयकार के शब्द से एवं नाचने वाली स्त्रियों के नृत्य से दोणाचार्य का विधिवत सत्कार करके कौरवों ने यह मान लिया कि अब पाण्डव पराजित हो गये। (8-9)
- राजन! महारथी द्रोणाचार्य सेनापति का पद पाकर अपनी सेना की व्यूह-रचना करके आपके पुत्रों को साथ ले युद्ध के लिये उत्सुक हो आगे बढ़े। (10)
- सिन्धुराज जयद्रथ, कलिंग नरेश और आपके पुत्र विकर्ण- ये तीनों उनके दक्षिण पार्श्व का आश्रय ले कवच बाँधकर खड़े हुए। (11)
- गान्धार देश के प्रधान-प्रधान घुड़सवारों के साथ, जो चमकीले प्रासों द्वारा युद्ध करने वाले थे, गान्धरराज शकुनि उन दक्षिण पार्श्व के योद्धाओं का प्रपक्ष[1] बनकर चला। (12)
- कृपाचार्य, कृतवर्मा, चित्रसेन, विविंशति और दु:शासन आदि वीर योद्धा बड़ी सावधानी के साथ द्रोणाचार्य के वाम पार्श्व की रक्षा करने लगे। (13)
- उनके सहायक या प्रपक्ष थे सुदक्षिण आदि काम्बोज देशीय सैनिक। ये सब लोग शकों और यवनों के साथ महान वेगशाली घोड़ो पर सवार हो युद्ध के लिये आगे बढ़े। (14)
- मद्र, त्रिगर्त, अम्बष्ठ, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, शिबि, शूरसेन, शूद्र, मलद, सौवीर, कितव, प्राच्य तथा दाक्षिणात्य वीर-ये सबके सब आपके पुत्र दुर्योधन को आगे करके सूतपुत्र कर्ण के पृष्ठ भाग में रहकर अपनी सेनाओं को हर्ष प्रदान करते हुए आपके पुत्रों के साथ चले। (15-16)
- समस्त योद्धाओं में श्रेष्ठ विकर्तन पुत्र कर्ण सारी सेनाओं में नूतन शक्ति और उत्साह का संचार करता हुआ सम्पूर्ण धनुर्धरों के आगे-आगे चला। (17)
- उसका अत्यन्त कान्तिमान विशाल ध्वज बहुत ऊँचा था। उसमें हाथी को बाँधने वाली साँकल का चिह्न सुशोभित था। वह ध्वज अपने सैनिकों का हर्ष बढ़ाता हुआ सूर्य के समान देदीप्यमान हो रहा था। (18)
- कर्ण को देखकर किसी को भी भीष्म जी के मारे जाने का दु:ख नहीं रह गया। कौरवों सहित सब राजा शोक रहित हो गये। (18)
- हर्ष में भरे हुए बहुत-से योद्धा वहाँ वेगपूर्वक बोल उठे- इस रणक्षेत्र में कर्ण को उपस्थित देख पाण्डव लोग ठहर नहीं सकेंगे। (19)
- क्योंकि कर्ण समरांगण में इन्द्र के सहित देवताओं को भी जीतने में समर्थ है। फिर, जो बल और पराक्रम में कर्ण की अपेक्षा निम्न श्रेणी के हैं, उन पाण्डवों को युद्ध में पराजित करना उसके लिये कौन बड़ी बात है। (21)
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