महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-12

द्विसप्ततितम (72) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


गौओं के लोक और गोदान विषयक युधिष्ठिर और इन्‍द्र के प्रश्‍न

युधिष्ठिर ने पूछा- प्रभो! आपने नाचिकेत ऋषि के प्रति किये गये गोदान सम्बन्धी उपदेश की चर्चा की और गौओं के माहात्मय का भी संक्षेप से वर्णन किया। महामते पितामह! महात्मा राजा नृग ने अनजान में किये हुए एक मात्र अपराध के कारण महान दुःख भोगा था। जब द्वारिका पुरी बसने लगी थी, उस समय उनका उद्धार हुआ और उनके उस उद्धार हेतु हुए भगवान श्रीकृष्ण। ये सारी बातें मैंने ध्यान से सुनी और समझी हैं। परंतु प्रभो! मुझे गोलोक के सम्बन्ध में कुछ संदेह है; अतः गोदान करने वाले मनुष्य जिस लोक में निवास करते हैं, उसका मैं यथार्थ वर्णन सुनना चाहता हूँ।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! इस विषय में जानकर लोग एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं। जैसा कि इन्द्र ने किसी समय ब्रह्मा जी से यही प्रश्‍न किया था। इन्द्र ने पूछा- 'भगवन! मैं देखता हूँ कि गोलोक निवासी पुरुष अपने तेज से स्वर्गवासियों की कांति फीकी करते हुए उन्हें लांघकर चले जाते हैं; अतः मेरे मन में यहाँ यह संदेह होता है। भगवन! गौओं के लोक कैसे हैं? अनघ! यह मुझे बाताइये। गोदान करने वाले लोग जिन लोकों में निवास करते हैं, उनके विषय में मैं निम्नांकित बातें जानना चाहता हूँ। वे लोक कैसे हैं? वहाँ क्या फल मिलता है? वहाँ का सबसे महान गुण क्या है? गौदान करने वाले मनुष्य सब चिन्ताओं से मुक्त होकर वहाँ किस प्रकार पहुँचते हैं?

दाता को गोदान का फल वहाँ कितने समय तक भोगने को मिलता है? अनेक प्रकार का दान कैसे किया जाता है? अथवा थोड़ा-सा भी दान किस प्रकार सम्भव होता है? बहुत-सी गौओं का दान कैसा होता है? अथवा थोड़ी-सी गौओं का दान कैसा माना जाता है? गोदान न करने वाले लोग भी किस उपाय से गोदान करने वालों के समान हो जाते हैं? यह मुझे बताइये। प्रभो! बहुत दान करने वाला पुरुष अल्प दान करने वाले के समान कैसे हो जाता है? तथा सुरेश्‍वर! अल्प दान करने वाला पुरुष बहुत दान करने वाले के तुल्य किस प्रकार हो जाता है? भगवन! गोदान में कैसी दक्षिणा श्रेष्ठ मानी जाती है? यह सब यथार्थ रूप से मुझे बताने की कृपा करें।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में गोदान सम्बन्धी बहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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