सप्तसप्तत्यधिकशततम (177) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
उस समय कर्ण को बड़े भारी संकट में पड़ा देख दुर्योधन ने राक्षसराज अलायुध को बुलाकर इस प्रकार कहा- ‘वीरवर! देखो, यह सूर्य पुत्र कर्ण हिडिम्बाकुमार घटोत्कच के साथ जूझ रहा है। युद्धस्थल में जहाँ तक इसके प्रयत्न से होना सम्भव है, वहाँ तक यह महान पराक्रम प्रकट कर रहा है। ‘भीमसेन के पुत्र ने नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा जिन शूरवीर नरेशों को घायल करके मार डाला है, वे हाथी के गिराये हुए वृक्षों के समान यहाँ पड़े हैं, इन्हें देखो। ‘वीर! तुम्हारी अनुमति से ही समरांगण में सम्पूर्ण राजाओं के बीच इस घटोत्कच को मैंने तुम्हारा भाग नियत किया है, अतः तुम पराक्रम करके इसे मार डालो। ‘शत्रुसूदन! कहीं ऐसा न हो कि यह पापी घटोत्कच मायाबल का आश्रय ले वैकर्तन कर्ण को पहले ही नष्ट कर दे’। राजा दुर्योधन के ऐसा कहने पर उस भयंकर पराक्रमी महाबाहु राक्षस ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर घटोत्कच पर धावा किया। प्रभो! तब घटोत्कच ने भी कर्ण को छोड़कर अपने समीप आते हुए शत्रु को बाणों द्वारा पीड़ित करना आरम्भ किया। फिर तो क्रोध में भरे हुए उन दोनों राक्षस राजों में वन के भीतर हथिनी के लिये लड़ने वाले दो मतवाले हाथियों के समान घोर युद्ध होने लगा। राक्षस से छूटने पर रथियों में श्रेष्ठ कर्ण ने भी सूर्य के समान तेजस्वी रथ के द्वारा भीमसेन पर धावा किया। आते हुए कर्ण की उपेक्षा करके समरांगण में सिंह के चंगुल में फँसे हुए साँड़ की भाँति घटोत्कच को अलायुध का ग्रास बनते देख योद्धाओं में श्रेष्ठ भीमसेन सूर्य के समान तेजस्वी रथ के द्वारा बाण समूहों की वर्षा करते हुए अलायुध के रथ की ओर बड़े वेग से बढ़े। प्रभो! उस समय उन्हें आते देख अलायुध ने घटोत्कच को छोड़कर भीमसेन को ललकारा। राजन! राक्षसों का विनाश करने वाले भीम ने सहसा निकट जाकर सैनिक गणों सहित राक्षस राज अलायुध को अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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