महाभारत शल्य पर्व अध्याय 31 श्लोक 1-19

एकत्रिंश (31) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

पण्डवों का द्वैपायन सरोवर पर जाना, वहाँ युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत तथा तालाब में छिपे हुए दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद

संजय कहते हैं- महाराज! उन तीनों रथियों के हट जाने पर पाण्डव उस सरोवर के तट पर आये, जिसमें दुर्योधन छिपा हुआ था। कुरुश्रेष्ठ! द्वैपायन-कुण्ड पर पहुँच कर युधिष्ठिर ने देखा कि दुर्योधन ने इस जलाशय के जल को स्तम्भित कर दिया है। यह देख कर कुरुनन्दन युधिष्ठिर ने भगवान वासुदेव से इस प्रकार कहा- ‘प्रभो! देखिये तो सही, दुर्योधन ने जल के भीतर इस माया का कैसा प्रयोग किया है? ‘यह पानी को रोक कर सो रहा है। इसे यहाँ मनुष्य से किसी प्रकार का भय नहीं है; क्योंकि यह इस दैवी माया का प्रयोग करके जल के भीतर निवास करता है। ‘माधव! यद्यपि यह छल-कपट की विद्या में बड़ा चतुर है, तथापि कपट करके मेरे हाथ से जीवित नहीं छूट सकता। यदि समरांगण में साक्षात वज्रधारी इन्द्र इसकी सहायता करें तो भी युद्ध में इसे सब लोग मरा हुआ ही देखेंगे’।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- भारत! मायावी दुर्योधन की इस माया को आप माया द्वारा ही नष्ट कर डालिये! युधिष्ठिर! मायावी का वध माया से ही करना चाहिये, यह सच्ची नीति है। भरतश्रेष्ठ! आप बहुत से रचनात्मक उपायों द्वारा जल में माया का प्रयोग करके मायामय दुर्योधन का वध कीजिये। रचनात्मक उपायों से ही इन्द्र ने बहुत से दैत्य और दानवों का संहार किया, नाना प्रकार के रचनात्मक उपायों से ही महात्मा श्रीहरि ने बलि को बांधा और बहुसंख्यक रचनात्मक उपायों से ही उन्होंने महान असुर हिरण्याक्ष का वध किया था। क्रियात्मक प्रयत्न के द्वारा ही भगवान ने हिरण्यकशिपु को भी मारा था। राजन! वृत्रासुर का वध भी क्रियात्मक उपाय से ही हुआ था, इसमें संशय नहीं है। राजन! पुलस्त्यकुमार विश्रवा का पुत्र रावण नामक राक्षस श्रीरामचन्द्र जी के द्वारा क्रियात्मक उपाय और युक्ति और कौशल के सहारे ही सम्बन्धियों और सेवकों सहित मारा गया, उसी प्रकार आप भी पराक्रम प्रकट करें। नरेश्वर! पूर्वकाल के महादैत्य तारक और पराक्रमी विप्रचित्ति को मैंने क्रियात्मक उपायों से ही मारा था। प्रभो! वातापि, इल्वल, त्रिशिरा तथा सुन्द-उपसुन्द नामक असुर भी कार्य कौशल से ही मारे गये हैं। क्रियात्मक उपायों से ही इन्द्र स्वर्ग का राज्य भोगते हैं। राजन! कार्य कौशल ही बलवान है, दूसरी कोई वस्तु नहीं। युधिष्ठिर! दैत्य, दानव, राक्षस तथा बहुत से भूपाल क्रियात्मक उपायों से ही मारे गये हैं; अतः आप भी क्रियात्मक उपाय का ही आश्रय लें।

संजय कहते हैं- महाराज! भरतनन्दन! भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर उत्तम एवं कठोर व्रत का पालन करने वाले पाण्डुकुमार कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने जल में स्थित हुए आपके महाबली पुत्र से हंसते हुए से कहा- ‘प्रजानाथ सुयोधन! तुमने किस लिये पानी में यह अनुष्ठान आरम्भ किया है। सम्पूर्ण क्षत्रियों तथा अपने कुल का संहार करा कर आज अपनी जान बचाने की इच्छा से तुम जलाशय में घुसे बैठै हो। राजा सुयोधन! उठो और हम लोगों के साथ युद्ध करो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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