महाभारत शल्य पर्व अध्याय 31 श्लोक 20-37

एकत्रिंश (31) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 20-37 का हिन्दी अनुवाद

‘राजन! नरश्रेष्ठ! तुम्हारा वह पहले का दर्प और अभिमान कहाँ चला गया, जो डर के मारे जल का स्तम्भन करके यहाँ छिपे हुए हो? ‘सभा में सब लोग तुम्हें शूरवीर कहा करते हैं। जब तुम भयभीत होकर पानी में सो रहे हो, तब तुम्हारे उस तथा कथित शौर्य को मैं व्यर्थ समझता हूँ। राजन! उठो, युद्ध करो; क्योंकि तुम कुलीन क्षत्रिय हो, विशेषतः कुरुकुल की संतान हो अपने कुल और जन्म का स्मरण तो करो। ‘तुम तो कौरव वंश में उत्पन्न होने के कारण अपने जन्म की प्रशंसा करते थे। फिर आज युद्ध से डर कर पानी के भीतर कैसे घुसे बैठे हो?

‘नरेश्वर! युद्ध न करना अथवा युद्ध में स्थिर न रह कर वहाँ से पीठ दिखाकर भागना यह सनातन धर्म नहीं है। नीच पुरुष ही ऐसे कुमार्ग का आश्रय लेते हैं। इससे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। ‘युद्ध से पार पाये बिना ही तुम्हें जीवित रहने की इच्छा कैसे हो गयी? तात! रणभूमि में गिरे हुए इन पुत्रों, भाईयों और चाचे-ताऊओं को देखकर सम्बन्धियों, मित्रों, मामाओं और बन्धु-बान्धवों का वध कराकर इस समय तालाब में क्यों छिपे बैठे हो? ‘तुम अपने को शूर तो मानते हो, परंतु शूर हो नहीं। भरतवंश के खोटी बुद्धि वाले नरेश! तुम सब लोगों के सुनते हुए व्यर्थ ही कहा करते हो कि ‘मैं शूरवीर हूं’। ‘जो वास्तव में शूरवीर हैं, वे शत्रुओं को देखकर किसी तरह भागते नहीं हैं। अपने को शूर कहने वाले सुयोधन! बताओ तो सही, तुम किस वृत्ति का आश्रय लेकर युद्ध छोड़ रहे हो। ‘अतः तुम अपना भय दूर करके उठो और युद्ध करो।

सुयोधन! भाइयों तथा सम्पूर्ण सेना को मरवाकर क्षत्रिय धर्म का आश्रय लिये हुए तुम्हारे-जैसे पुरुष को धर्म सम्पादन की इच्छा से इस समय केवल अपनी जान बचाने का विचार नहीं करना चाहिये। ‘तुम जो कर्ण और सुबल पुत्र शकुनि का सहारा लेकर मोहवश अपने आप को अजर-अमर सा मान बैठे थे, अपने को मनुष्य समझते ही नहीं थे, वह महान पाप करके अब युद्ध क्यों नहीं करते? भारत! उठो, हमारे साथ युद्ध करो। तुम्हारे जैसा वीर पुरुष मोहवश पीठ दिखाकर भागना कैसे पसंद करेगा? ‘सुयोधन! तुम्हारा वह पौरुष कहाँ चला गया? कहाँ है वह तुम्हारा अभिमान? कहाँ गया पराक्रम? कहाँ है वह महान गर्जन-तर्जन? और कहाँ गया वह अस्त्र विद्या का ज्ञान? इस समय इस तालाब में तुम्हें कैसे नींद आ रही है? भारत! उठो और क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करो। ‘भरतनन्दन! हम सब लोगों को परास्त करके इस पृथ्वी का शासन करो अथवा हमारे हाथों मारे जाकर सदा के लिये रणभूमि में सो जाओ। ‘भगवान ब्रह्मा ने तुम्हारे लिये यही उत्तम धर्म बनाया है। उस धर्म का यथार्थ रूप से पालन करो। महारथी वीर! वास्तव में राजा बनो (राजोचित पराक्रम प्रकट करो)’।

संजय कहते हैं- महाराज! बुद्धिमान धर्म पुत्र युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर जल के भीतर स्थित हुए तुम्हारे पुत्र ने यह बात कही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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