महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 77 श्लोक 1-12

सप्‍तसप्‍ततितम (77) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

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महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍तसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


नाना प्रकार के अशुभसूचक उत्‍पात, कौरव सेना में भय और श्रीकृष्‍ण का अपनी बहिन सुभद्रा को आश्वासन देना

  • संजय कहते हैं– राजन! दु:ख और शोक से पीड़ित हुए श्रीकृष्‍ण और अर्जुन सर्पों के समान लंबी साँस खींच रहे थे। उन दोनों को उस रात में नींद नहीं आयी। (1)
  • नर और नारायण को कुपित जान इन्‍द्रसहित सम्‍पूर्ण देवता व्‍यथित हो चिन्‍ता करने लगे; यह क्‍या होने वाला है। (2)
  • रुक्ष, भयसूचक एवं दारुण वायु बहने लगी[1] सूर्यमण्‍डल में कबन्‍धयुक्‍त घेरा देखा गया। (3)
  • बिना वर्षा के ही वज्र गिरने लगे। आकाश में बिजनी की चमक के सा‍थ भयंकर गर्जना होने लगी। पर्वत, वन और काननों सहित पृथ्‍वी काँपने लगी। (4)
  • महाराज! ग्राहों के निवासस्‍थान समुद्रों में ज्‍वार आ गया। समुद्रगामिनी नदियाँ उल्‍टी धारा में बहकर अपने उद्गम की ओर जाने लगीं। (5)
  • मांसभक्षी प्राणियों के आनन्‍द और यमराज के राज्‍य की वृद्धि के लिये रथ, घोड़े, मनुष्‍य और हाथियों के नीचे ऊपर के ओष्‍ठ फड़कने लगे। (6)
  • भरतश्रेष्‍ठ! हाथी, घोड़े आदि वाहन मल-मूल करने और रोने लगे। उन सब भयंकर एवं रोमांचकारी उत्‍पातों को देखकर और महाबली सव्‍यसाची अर्जुन की उस भयंकर प्रतिज्ञा को सुनकर आपके सभी सैनिक व्‍यथित हो उठे। (7-8)
  • इधर इन्‍द्रकुमार महाबाहु अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा– ‘माधव! आप पुत्रवधू उत्तरा सहित अपनी बहिन सुभद्रा को धीरज बँधाइये। उत्तरा और उसकी सखियों का शोक दूर कीजिये। प्रभो! शान्तिपूर्ण, सत्य और युक्तियुक्‍त वचनों द्वारा इन सब को आश्वासन दीजिये।' (9-10)
  • तब भगवान श्रीकृष्‍ण अत्‍यन्‍त उदास मन से अर्जुन के शिविर में गये और पुत्रशोक से पीड़ित हुई अपनी दुखिया बहिन को आश्वासन देने लगे। (11)
  • भगवान श्रीकृष्‍ण बोले– वृष्णिनन्दिनी! तुम और पुत्रवधू उत्तरा कुमार अभिमन्‍यु के लिये शोक न करो। भीरु! काल एक दिन सभी प्राणियों की ऐसी ही अवस्‍था कर देता है। (12)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दूसरे दिन सूर्योदय होने पर

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