नारायण

Disamb2.jpg नारायण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नारायण (बहुविकल्पी)

नारायण हिन्दू धर्म में मान्य भगवान श्रीविष्णु के हज़ारों नामों में से एक नाम है। इस नाम का धार्मिक रूप से बड़ा महत्त्व है। इस एक नाम में सृष्टि का सम्पूर्ण सार छिपा हुआ है। इसीलिए शास्त्रों में अधिकांश स्थानों पर विष्णु भगवान को 'नारायण' नाम से संबोधित किया गया है।

  • चार भुजाधारी भगवान विष्णु के दाहिनी एवं ऊर्ध्व भुजा के क्रम से अस्त्र विशेष ग्रहण करने पर 'केशव' आदि नाम होते हैं अर्थात, दाहिनी ओर का ऊपर का हाथ, दाहिनी ओर का नीचे का हाथ, बायीं ओर का ऊपर का हाथ और बायीं ओर का नीचे का हाथ- इस क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र आदि आयुधों को क्रम या व्यतिक्रमपूर्वक धारण करने पर भगवान की भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ होती हैं। उन्हीं संज्ञाओं का निर्देश करते हुए भगवान का पूजन बतलाया जाता है।
  • पद्म, गदा, चक्र और शंख के क्रम से शस्त्र धारण करने पर उन्हें 'नारायण' कहते हैं।
  • सम्पूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भी भगवान श्रीविष्णु ही नारायण कहे जाते हैं।
  • 'नारायण' भगवान विष्णु के सर्वप्रसिद्ध नामों में गिना जाता है। 'मनुस्मृति' में लिखा है कि ‘नर’ परमात्मा का नाम है। परमात्मा से सबसे पहले जल उत्पन्न हुआ, इसलिये आपको[1] ‘नारा’ कहते हैं। जल जिसका प्रथम अयन या अधिष्ठान है, उस परमात्मा का नाम हुआ ‘नारायण’।
‘आपो नारा इति प्रोक्ता मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः। अयनं तस्य ताः पूर्व तेन नारायणः स्मृतः।।’
  • महाभारत के अनुसार परमात्मा या आत्मा का नाम ‘नर’ है। परमात्मा से सबसे पहले उत्पन्न होने के कारण आकाशादि को ‘नार’ कहते हैं। यह सर्वत्र व्याप्त है तथा सबकी उत्पत्ति का कारण भी है, अतः परमात्मा का नाम नारायण हुआ।
'नराणामयनं यस्मात्तेन नारायणः स्मृतः।'
  • नरों का[2] त्रिमूर्त्तियों के द्वारा सर्जन, संहार और पालन करने के कारण भी अयन होने से यह नारायण कहे जाते हैं। कहीं-कहीं ऐसा भी लिखा मिलता है कि किसी मन्वंतर में विष्णु ‘नर’ नामक ऋषि के पुत्र हुए थे। इससे उनका नाम 'नारायण' पड़ा। 'ब्रह्मवैवर्त्तपुराण' तथा अन्य पुराणों में कुछ और ही कथा मिलती है। यह सारे संसार में व्याप्त हैं। ये सर्वज्ञ, सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जल को
  2. जीवों का

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