गंगा

Disamb2.jpg गंगा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- गंगा (बहुविकल्पी)
भीष्म को शांतनु को सौंपती हुई गंगा

गंगा पौराणिक महाकाव्य महाभारत तथा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितामह भीष्म की माता थीं। हस्तिनापुर नरेश शांतनु से इनका विवाह हुआ था। गंगा भारत में बहने वाली पवित्र नदी का नाम है, भीष्म इन्हीं के पुत्र कहे गए हैं।

पौराणिक उल्लेख

पौराणिक उल्लेखानुसार- एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित होकर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये। तब गंगा ने कहा- "हे राजन! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ और आपसे विवाह करने की अभिलाषा लेकर आपके पास आई हूँ।" इस पर महाराज प्रतीप बोले- "गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है। अतः मैं तुम्हें अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।"

यह सुनकर गंगा वहाँ से चली गईं। अब महाराज प्रतीप ने पुत्र प्राप्ति के लिये घोर तप करना आरम्भ कर दिया। उनके तप के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने शांतनु रखा। शांतनु के युवा होने पर उसे गंगा के साथ विवाह करने का आदेश देकर महाराज प्रतीप स्वर्ग चले गये। पिता के आदेश का पालन करने के लिये शांतनु ने गंगा के पास जाकर उनसे विवाह करने के लिये निवेदन किया। गंगा बोलीं- "राजन! मैं आपके साथ विवाह तो कर सकती हूँ, किन्तु आपको वचन देना होगा कि आप मेरे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।" शांतनु ने गंगा के कहे अनुसार वचन देकर उनसे विवाह कर लिया।

भीष्म की माता

गंगा के गर्भ से महाराज शांतनु के आठ पुत्र हुये, जिनमें से सात को गंगा ने नदी में लेजा कर बहा दिया और अपने दिये हुये वचन में बँधे होने के कारण महाराज शांतनु कुछ बोल न सके। जब गंगा का आठवाँ पुत्र हुआ और वह उसे भी नदी में बहाने के लिये ले जाने लगी तो राजा शांतनु से रहा न गया और वे बोले- "गंगे! तुमने मेरे सात पुत्रों को नदी में बहा दिया, किन्तु अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मैंने कुछ न कहा। अब तुम मेरे इस आठवें पुत्र को भी बहाने जा रही हो। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके इसे नदी में मत बहाओ।" यह सुनकर गंगा ने कहा- "राजन! आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है, इसलिये अब मैं आपके पास नहीं रह सकती।” इतना कहकर गंगा अपने पुत्र के साथ अन्तर्धान हो गईं। तत्पश्चात् महाराज शांतनु ने छत्तीस वर्ष ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके व्यतीत कर दिये। फिर एक दिन उन्होंने गंगा के किनारे जाकर गंगा से कहा- "गंगे! आज मेरी इच्छा उस बालक को देखने की हो रही है, जिसे तुम अपने साथ ले गई थीं।" गंगा एक सुन्दर स्त्री के रूप में उस बालक के साथ प्रकट हो गईं और बोलीं- "राजन! यह आपका पुत्र है तथा इसका नाम 'देवव्रत' (भीष्म) है, इसे ग्रहण करो। यह पराक्रमी होने के साथ विद्वान भी होगा। अस्त्र विद्या में यह परशुराम के समान होगा।" महाराज शांतनु अपने पुत्र देवव्रत को पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुये और उसे अपने साथ हस्तिनापुर लाकर युवराज घोषित कर दिया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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