मत्स्यावतार

मत्स्यवतार

मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया।

कथा

कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी-सी मछली आ गई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने कहा- "आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो सत्यव्रत ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। सत्यव्रत समझ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। उसने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की।

राजा सत्यव्रत की प्रार्थना सुनकर साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि- "ये मेरा 'मत्स्यावतार' है।" भगवान ने सत्यव्रत से कहा- "सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सुक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना। जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। उस समय प्रश्न पुछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जाएगी।" तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया, जो 'मत्स्यपुराण' नाम से प्रसिद्ध है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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