मुचुकुन्द त्रेता युग में 'इक्ष्वाकु वंश' के राजा थे। उनके पिता मान्धाता थे। मुचुकुन्द योगी थे और भगवान विष्णु की योगशक्ति से परिचित थे। इनकी पुत्री का नाम शशिभागा था।[1]
- मुचुकुन्द ने देवताओं का साथ देकर दानवों का संहार किया था, जिस कारण देवता युद्ध जीत गए थे। तब इन्द्र ने उन्हें वर मांगने को कहा। उन्होंने वापस पृथ्वीलोक जाने की इच्छा व्यक्त की। तब इन्द्र ने उन्हें बताया कि पृथ्वी पर और देवलोक में समय का बहुत अंतर है, जिस कारण अब वह समय नहीं रहा। उन्होंने मुचुकुन्द को बताया कि पृथ्वी पर उनके सब बंधु मर चुके हैं, उनके वंश का कोई नहीं बचा।" यह जानकर मुचुकुन्द बहुत दु:खी हुए और वर माँगा कि "वह गहरी निद्रा में सोना चाहते हैं"। तब इन्द्र ने वरदान दिया कि वे किसी निर्जन स्थान पर सो जायें और यदि कोई भी उनकी निद्रा में विघ्न डालेगा तो मुचुकुन्द की दृष्टि पड़ते ही वह भस्म हो जायेगा।"[2]
- मथुरा पर विजय पाकर कालयवन भगवान श्रीकृष्ण के पीछे भागते-भागते गिरनार पहुँचा, जहाँ एक खोह में मुचुकुन्द सो रहे थे। कालयवन ने मुचुकुन्द को कृष्ण समझकर लात मारकर जगाया और इनके देखते ही वह भस्म हो गया। तदुपरांत श्रीकृष्ण उनके सामने गये और मुचुकुन्द ने श्रीकृष्ण भगवान में लीन होने की इच्छा प्रकट की। श्रीकृष्ण ने उन्हें एक बार और धार्मिक ब्राह्मण के रूप में जन्म लेने को कहा, तब वह ब्रह्म में लीन हो सकेंगे। इसके पश्चात उन्होंने कलियुग का आगमन देखा और गंधमादन पर्वत में प्रवेश कर गये।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत पुराण 9.6.38; 2.7.44; मत्स्य पुराण; वायु पुराण 88.72
- ↑ शर्मा, राणाप्रसाद पौराणिक कोश, 1986 (द्वितीय संस्करण) (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, 426।
- ↑ भागवत पुराण 10.51; 52.1-4; ब्रह्म पुराण 3.36.26; विष्णु पुराण 5.23.18-47, 24.1-5
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