रत्नमाला

रत्नमाला राजा बलि की कन्या थी, जो श्रीकृष्ण को दूध पिलाने की लालसा से द्वापर युग में कृष्णावतार के समय पूतना हुई।

  • श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार राजा बलि की यज्ञशाला में वामन भगवान को देखकर उनकी पुत्री रत्नमाला के हृदय में पुत्र स्नेह का भाव उदय हो आया और वह मन-ही-मन अभिलाषा करने लगी कि यदि मुझे ऐसा बालक हो और मैं उसे स्तन पिलाऊँ तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। वामन भगवान ने अपने भक्त बलि की पुत्री के इस मनोरथ का मन-ही-मन अनुमोदन किया। वही द्वापर में पूतना हुई और श्रीकृष्ण के स्पर्श से उसकी लालसा पूर्ण हुई।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 11-24

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