पर्णाशा हिन्दू पौराणिक मान्यताओंके अनुसार पारियात्र पर्वत से निकली एक नदी थी।[1]
- पौराणिक उल्लेखानुसार प्राचीन समय में राजा देवावृध हुए, जिनके कोई पुत्र न था। उन्होंने 'मुझे सम्पूर्ण सद्गुणों से सम्पन्न पुत्र पैदा हो', ऐसी अभिलाषा से युक्त हो अत्यन्त घोर तप किया।
- घोर तपस्या के बाद उन्होंने मन्त्र को संयुक्त कर पर्णाशा नदी के जल का स्पर्श किया। इस प्रकार स्पर्श करने के कारण पर्णाशा नदी राजा का प्रिय करने का विचार करने लगी।
- पर्णाशा नदी उस राजा के कल्याण की चिन्ता से व्याकुल हो उठी। अन्त में वह इस निश्चय पर पहुँची कि- "मैं ऐसी किसी दूसरी स्त्री को नहीं देख पा रही हूँ, जिसके गर्भ से इस प्रकार का[2] पुत्र पैदा हो सके, इसलिये आज मैं स्वयं ही हज़ारों प्रकार का रूप धारण करूँगी।" तत्पश्चात् पर्णाशा ने परम सुन्दर शरीर धारण करके कुमारी रूप में प्रकट होकर राजा को सूचित किया।
- महान व्रतशाली राजा देवावृध ने पर्णाशा को पत्नीरूप से स्वीकार कर लिया, तदुपरान्त नदियों में श्रेष्ठ पर्णाशा ने राजा देवावृध के संयोग से नवें महीने में सम्पूर्ण सद्गुणों से सम्पन्न 'बभ्रु' नामक पुत्र को जन्म दिया।
- इन्हें भी देखें: कृष्ण वंशावली
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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