वज्रनाभ

Disamb2.jpg वज्रनाभ एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वज्रनाभ (बहुविकल्पी)

वज्र अथवा वज्रनाभ भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र का नाम था। पांडवों के स्वर्गारोहण के पश्चात परीक्षित इनसे मिलने मथुरा गये थे। मथुरा के युद्धोपरांत जब द्वारका नष्ट हो गई, तब श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ मथुरा के राजा हुए। उनके नाम पर ही मथुरामंडल भी 'वज्र प्रदेश' या 'व्रज प्रदेश' कहा जाने लगा। वज्रनाभ ने श्रीकृष्ण से सम्बंधित स्थानों पर नयी बस्तियाँ शांडिल्य मुनि की सम्मति तथा परीक्षित की सहायता से स्थापित की थीं।[1]

मथुरामंडल के राजा

अनिरुद्ध के पुत्र वज्रनाभ ही यदुकुल के महासंहार में बच गये थे। स्त्रियों, सेवकों आदि के साथ अर्जुन उन्हें हस्तिनापुर ले आये। वहीं युधिष्ठिर ने मथुरामंडल का उनको राजा बना दिया था। उस समय वज्रनाभ की अवस्था छोटी ही थी। पांडवों के महाप्रस्थान के पश्चात परीक्षित स्वयं वज्रनाभ को मथुरा का राज्य सौंपने आये थे। जब वज्रनाभ मथुरा के राजा बने, उस समय पूरा वज्रमण्डल उजाड़ पड़ा था। वहाँ कोई पशु-पक्षी भी नहीं रहा था। मथुरा में केवल सूने भवन थे। परीक्षित ने वज्रनाभ से कहा- "तुम राज्य, कोष, सेना आदि के लिये चिन्ता मत करना। यह सब मैं तुम्हें बहुत अधिक दूंगा। कोई शत्रु मेरे जीते-जी तुम्हारी ओर देख तक नहीं सकता। तुम तो केवल माताओं की सेवा करो। जिसको जैसे प्रसन्नता हो, वही तुम्हें करना चाहिये।" वज्रनाभ ने कहा- "चाचाजी ! यद्यपि मैं अभी बालक हूं, फिर भी मुझे सभी अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान है। राज्य, धन या शत्रु की मुझे चिंता नहीं; किंतु मैं यहाँ राज्य किस पर करूं? यहाँ जो प्रजा ही नहीं है। आप इसकी कोई व्यवस्था करे।" परीक्षित ने पता लगाया तो यमुना-किनारे महर्षि शाण्डिल्य का आश्रम मिल गया।

मन्दिर निर्माण

महाराज वज्रनाभ ने परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से मथुरामंडल की पुन: स्थापना करके उसकी सांस्कृतिक छवि का पुनरुद्वार किया। वज्रनाभ द्वारा जहाँ अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया गया, वहीं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जन्मस्थली का भी महत्त्व स्थापित किया।

मूर्ति स्थापना

पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्यस्मृति में तथा उनके उपासना क्रम को संस्थापित करने हेतु चार देव विग्रह तथा चार देवियों की मूर्तियाँ निर्माण कर स्थापित की थीं। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र महाराज वज्रनाभ ने व्रज में आठ मूर्तियों का आविष्कार किया, वे थीं- *चार देव अर्थात् हरदेव *वलदेव *केशवदेव *गोविन्ददेव *दो नाथ- श्रीनाथ और गोपीनाथ *दो गोपाल- साक्षी गोपाल और मदनगोपाल-

चारि देव, दुइ नाथ, दुइ गोपाल वाखान। वज्रनाभ प्रकटित एइ आठ मूर्ति जान॥


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्कंदपुरा वैष्णव. श्रीमद्भागवत माहात्म्य

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