कृष्ण सन्तति

'श्रीमद्भागवत महापुराण'[1] के अनुसार- श्रीशुकदेवजी कहते हैं- "परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक पत्नी के गर्भ से दस-दस पुत्र उत्पन्न हुए। वे रूप, बल आदि गुणों में अपने पिता भगवान श्रीकृष्ण से किसी बात में कम न थे। राजकुमारियाँ देखतीं कि भगवान श्रीकृष्ण हमारे महल से कभी बाहर नहीं जाते। सदा हमारे ही पास बने रहते हैं। इससे वे यही समझतीं कि श्रीकृष्ण को मैं ही सबसे प्यारी हूँ।

परीक्षित! सच पूछो तो वे अपने पति भगवान श्रीकृष्ण का तत्त्व-उनकी महिमा नहीं समझती थीं। वे सुन्दरियाँ अपने आत्मानन्द में एकरस स्थित भगवान श्रीकृष्ण के कमल-कली के समान सुन्दर मुख, विशाल बाहु, कर्णस्पर्शी नेत्र, प्रेमभरी मुसकान, रसमयी चितवन और मधुर वाणी से स्वयं ही मोहित रहती थीं। वे अपने श्रृंगार सम्बन्धी हावभावों से उनके मन को अपनी ओर खींचने में समर्थ न हो सकीं। वे सोलह हज़ार से अधिक थीं। अपनी मन्द-मन्द मुस्कान और तिरछी चितवन से युक्त मनोहर भौंहों के इशारे से ऐसे प्रेम के बाण चलाती थीं, जो काम-कला के भावों से परिपूर्ण होते थे, परन्तु किसी भी प्रकार से, किन्हीं साधनों के द्वारा वे भगवान के मन एवं इन्द्रियों में चंचलता नहीं उत्पन्न कर सकीं।

परीक्षित! ब्रह्मा आदि बड़े-बड़े देवता भी भगवान के वास्तविक स्वरूप को या उनकी प्राप्ति के मार्ग को नहीं जानते। उन्हीं रमारमण भगवान श्रीकृष्ण को उन स्त्रियों ने पति के रूप में प्राप्त किया था। अब नित्य-निरन्तर उनके प्रेम और आनन्द की अभिवृद्धि होती रहती थी और वे प्रेमभरी मुसकराहट, मधुर चितवन, नवसमागम की लालसा आदि से भगवान की सेवा करती रहती थीं। उनमें से सभी पत्नियों के साथ सेवा करने के लिये सैकड़ों दासियाँ रहतीं। फिर भी जब उनके महल में भगवान पधारते तब वे स्वयं आगे जाकर आदरपूर्वक उन्हें लिवा लातीं, श्रेष्ठ आसन पर बैठातीं, उत्तम सामग्रियों से उनकी पूजा करतीं, चरणकमल पखारतीं, पान लगाकर खिलातीं, पाँव दबाकर थकावट दूर करतीं, पंखा झलतीं, इत्र-फुलेल, चन्दन आदि लगातीं, फूलों के हार पहनातीं, केश सँवारतीं, सुलातीं, स्नान करातीं और अनेक प्रकार के भोजन कराकर अपने हाथों भगवान की सेवा करतीं।

परीक्षित! मैं कह चुका हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक पत्नी के दस-दस पुत्र थे। उन रानियों में आठ पटरानियाँ थीं, जिनके विवाह का वर्णन मैं पहले कर चुका हूँ। अब उनके प्रद्युम्न आदि पुत्रों का वर्णन करता हूँ।

इन पटरानियों के अतिरिक्त भगवान की रोहिणी आदि सोलह हज़ार एक सौ और भी पत्नियाँ थीं। उनके दीप्तिमान और ताम्रतप्त आदि दस-दस पुत्र हुए। रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न का मायावती रति के अतिरिक्त भोजकट -नगर-निवासी रुक्मी की पुत्री रुक्मवती से भी विवाह हुआ था। उसी के गर्भ से परम बलशाली अनिरुद्ध का जन्म हुआ।

परीक्षित! श्रीकृष्ण के पुत्रों की माताएँ ही सोलह हज़ार से अधिक थीं। इसलिये उनके पुत्र-पौत्रों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गयी।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दशम स्कन्ध, अध्याय 61, श्लोक 1-19

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