शालिग्राम

सवामन शालिग्राम मन्दिर, वृन्दावन

शालिग्राम भगवान विष्णु के प्रतीक माने जाते हैं, जैसे भगवान शिव को शिवलिङ्ग के रूप में पूजा जाता है। उसी तरह भगवान शालिग्राम को भगवान विष्णु के रूप में पूजा जाता है।

यह काले रंग का और चिकना पत्थर होता है, जिसे भगवान विष्णु का साक्षात स्वरूप माना जाता है। 'शालिग्राम' के पत्थर नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी में पाए जाते हैं। पुरातन कथा के अनुसार तुलसी दिव्य पुरुष 'शंखचूड़' की निष्ठावान पत्नी वृन्दा थी। भगवान विष्णु ने छल से उसका सतित्व भंग किया था। अत: उसने भगवान काे पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इस तरह भगवान 'शालीग्राम' रूप में परिवर्तित हो गए। वृन्दा की भक्ति आैर सदाचारिता की लगन काे देखकर श्री विष्णु ने उसे वरदान देकर पूजनीय पाैधा 'तुलसी' और गंडकी नदी बना दिया।

गंडकी नदी में पाए जाने वाले विशेष शालिग्राम शिला को साक्षात भगवान विष्णु माना जाता है। यह नदी नेपाल की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसे नारायणी नाम से भी जाना जाता है। इसका बहाव मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में प्रवाहित होता है। यह दक्षिण तिब्बत के पहाड़ों से निकलती है तथा सोनपुर और हाजीपुर के मध्य में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है। यह नदी काली नदी और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है। इन नदियों के संगम स्थल से भारतीय सीमा तक नदी को नारायणी के नाम से जाना जाता है।[1]

तुलसी और शालिग्राम कथा

एक समय जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर हुआ। इसका विवाह वृंदा नामक कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। इसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था। इसने एक युद्ध में भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे अतः वृंदा के शाप को जिवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।

भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गयी। वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री विष्णु शालिग्राम शिला के रूप में रहते हैं गंडकी नदी में punjabkesari=हिन्दी। अभिगमन तिथि: 24जनवरी, 2016।
  2. भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का ब्याह होगा तुलसी से amarujala=हिन्दी। अभिगमन तिथि: 24जनवरी, 2016।

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