बाँसुरी

बाँसुरी
Bansuri

'बाँसुरी' अत्यंत लोकप्रिय सुषिर वाद्य यंत्र माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक बांस से बनायी जाती है, इसलिये लोग उसे बांस बांसुरी भी कहते हैं। बाँसुरी बनाने की प्रक्रिया कठिन नहीं है, सबसे पहले बांसुरी के अंदर के गांठों को हटाया जाता है, फिर उस के शरीर पर कुल सात छेद खोदे जाते हैं। सबसे पहला छेद मुंह से फूंकने के लिये छोड़ा जाता है, बाक़ी छेद अलग अलग आवाज़ निकालने का कार्य देते हैं।

  • बाँसुरी, वंसी, वेणु, वंशिका आदि कई सुंदर नामों से सुसज्जित है।
  • श्रीकृष्ण के पास 3 प्रकार की बाँसुरी होती हैं और सभी बाँस से बनी होती हैं-
  1. मुरली- यह 7 छेद की होती है। यह भौतिक संसार और गायों को आकर्षित करने के लिए होती है।
  2. वेणु- यह 9 छेद की होती है। यह गोपियों और राधारानी को आकर्षित के लिए होती है। इसको वह गोपियों को रास नृत्य के लिए बुलाने के लिए बजाते हैं।
  3. वंशी- यह 12 छेद की होती है। यह पेड़ों, नदियों, जंगलों आदि को आकर्षित करने के लिए होती है।


बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण
  • बाँसुरी की अभिव्यक्त शक्ति अत्यंत विविधतापूर्ण है, उससे लम्बे, ऊंचे, चंचल, तेज़ व भारी प्रकारों के सूक्ष्म भाविक मधुर संगीत बजाया जाता है। लेकिन इतना ही नहीं, वह विभिन्न प्राकृतिक आवाज़ों की नक़ल करने में निपुण है, उदाहरण के लिये उससे नाना प्रकार के पक्षियों की आवाज़ की हू-ब-हू नक्ल की जा सकती है।
  • बाँसुरी की बजाने की तकनीक कलाएं समृद्ध ही नहीं, उस की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं, जैसे मोटी लम्बी बांसुरी, पतली नाटी बांसुरी, सात छेदों वाली बांसुरी और ग्यारह छेदों वाली बांसुरी आदि देखने को मिलते हैं और उस की बजाने की शैली भी भिन्न रूपों में पायी जाती है।
  • प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी।
  • मुरली और श्री कृष्ण एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। मुरली के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया।
  • कृष्ण के बाद भी भारत में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी। मानो श्रीकृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा।
  • वह कृष्ण प्रिया थी, किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ।
  • युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस रही, युगों बाद में पंडित पन्नालाल घोष जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया। लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई।
  • वर्तमान समय में हरिप्रसाद चौरसिया जी का बाँसुरी वादन विश्व प्रसिद्ध है।




टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः