वसातिगण

वसातिगण का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। यह वसाति देश के निवासी थे, जिन्होंने महाभारत युद्ध में दुर्योधन का साथ दिया था।

'महाभारत द्रोण पर्व'[1] में उल्लेख मिलता है कि जयद्रथ के वध से दुर्योधन बहुत दु:खी हो गया। व्याकुल दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष जाता है और खेद प्रकट करते हुए उन्हें उपालम्भ देना प्रारम्भ कर देता है। वह कहता है कि-

"महाबाहो! इस समय जो मेरे सहायक हैं, वे अरक्षित होने के कारण हमारी सहायता करना नहीं चाहते हैं। वे जैसा पांडवों का कल्याण चाहते हैं, वैसा हम लोगों का नहीं। युद्धस्थल में सत्यप्रतिज्ञ भीष्म ने स्वयं ही अपनी मृत्यु स्वीकार कर ली और आप भी हमारी इसलिये उपेक्षा करते हैं कि अर्जुन आपके प्रिय शिष्‍य हैं। इसलिये हमारी विजय चाहने वाले सभी योद्धा मारे गये। इस समय तो मैं केवल कर्ण को ही ऐसा देखता हूं, जो सच्चे हृदय से मेरी विजय चाहता है। जो मूर्ख मनुष्य मित्र को ठीक-ठीक पहचाने बिना ही उसे मित्र के कार्य में नियुक्त कर देता है, उसका वह काम बिगड़ जाता है। मेरे परम सुहद् कहलाने वालों ने मोहवश धन (राज्य) चाहने वाले मुझ लोभी, पापी और कुटिल के इस कार्य को उसी प्रकार चौपट कर दिया है। जयद्रथ और सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा मारे गये। अभीषाह, शूरसेन, शिवि तथा वसातिगण भी चल बसे। वे नरश्रेष्ठ सुहद् रणभूमि में मेरे लिये युद्ध करते-करते अर्जुन के हाथ से मारे जाकर जिन लोकों में गये हैं, वहीं आज मैं भी जाऊँगा। उन पुरुष रत्‍न मित्रों के बिना अब मेरे जीवित रहने का कोई प्रयोजन नहीं है।"


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 95 |

  1. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 150 श्लोक 20-36

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