बकासुर

Disamb2.jpg बकासुर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बकासुर (बहुविकल्पी)
बकासुर

बक अथवा बकासुर महाभारत के उल्लेखानुसार एक बलशाली राक्षस था, जिसका एकचक्रा नगरी तथा उसके आसपास के जनपद पर शासन चलता था। वहाँ के निवासियों को बकासुर को भोजन आदि देना पड़ता था। बकासुर का वध भीम ने किया।[1][2]

  • लाक्षागृह से बच निकलने के बाद पांचों पांडव तथा कुंती, कौरवों से बचने के लिए एकचक्रा नामक नगरी में छद्मवेश में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे थे। वे लोग भिक्षा मांगकर अपना निर्वाह करते थे।
  • एकचक्रा नगरी के पास बकासुर नामक एक असुर रहता था। एकचक्रा का शासक दुर्बल था, अत: वहाँ बकासुर का आतंक छा गया था। बकासुर शत्रुओं तथा हिंसक प्राणियों से नगरी की सुरक्षा करता तथा फलस्वरूप नगरवासियों ने यह नियत कर दिया था कि वहाँ के निवासी गृहस्थ बारी-बारी से उसके एक दिन के भोजन का प्रबंध करेंगे।
  • बकासुर नरभक्षी था। उसको प्रतिदिन बीस खारी अगहनी के चावल, दो भैंसे तथा एक मनुष्य को आवश्यकता होती थी। एक दिन पांडवों के आश्रयदाता ब्राह्मण की बारी थी। उसके परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री थे। वे लोग निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको बकासुर के पास भेजा जाय। कुंती की प्रेरणा से ब्राह्मण के स्थान पर खाद्य सामग्री लेकर भीम बकासुर के पास गये।
  • पहले तो वह बकासुर को चिढ़ाकर उसके लिए आयी हुई खाद्य सामग्री खाते रहे, बाद में भीम ने द्वंद्व युद्ध कर बकासुर को पराजित किया और उसका वध कर डाला। भीम ने उसके परिवारजनों से कहा कि वे लोग नर-मांस का परित्याग कर देंगे तो वे उनको नहीं मारेंगे। उन्होंने स्वीकार कर लिया।
  • पांडवों ने अपने आश्रयदाता ब्राह्मण से प्रतिज्ञा ले ली कि वह किसी पर यह प्रकट नहीं होने देगा कि बकासुर को भीम ने मारा है।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदिपर्व 159.3.7; 162.5
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 345 |
  3. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 156 से 163 तक

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