जलसंघ हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र का पुत्र था। वह सौ कौरवों में से एक था। महाभारत के युद्ध में इसका वध सात्यकि द्वारा हुआ।
धृतराष्ट्र से महाभारत युद्ध का वर्णन करते हुए संजय ने कहा- "महाराज! हाथी की पीठ पर बैठकर अपने सोने के बने हुए धनुष को हिलाता हुआ जलसंघ बिजली सहित मेघ के समान शोभा पा रहा था। सहसा अपनी ओर आते हुए मगधराज के उस गजराज को सात्यकि ने उसी प्रकार रोक दिया, जैसे तट की भूमि समुद्र को रोक देती है। राजन! सात्यकि के उत्तम बाणों से उस हाथी को अवरुद्ध हुआ देख महाबली जलसंघ रणक्षेत्र में कुपित हो उठा। महाराज! क्रोध में भरे हुए जलसंघ ने भार सहन करने में समर्थ बाणों द्वारा शिनिपौत्र सात्यकि की विशाल छाती पर गहरा आघात किया। तत्पश्चात् दूसरे तीखे, पैने और पानीदार भल्ल से उसने बाण फेंकते हुए वृष्णिवीर सात्यकि के धनुष को काट डाला। भारत! धनुष काटने के पश्चात् सात्यकि को उस मागध वीर ने हँसते हुए ही पाँच तीखे बाणों द्वारा घायल कर दिया। जलसंघ के बहुत से बाणों द्वारा क्षत-विक्षत होने पर पराक्रर्मी महाबाहु सात्यकि कम्पित नहीं हुए। यह अद्भुत सी बात थी। बलवान सात्यकि ने उसके बाणों को कुछ भी न गिनते हुए संभ्रम में न पड़कर दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और कहा- "अरे! खड़ा रह, खड़ा रह।" ऐसा कहकर सात्यकि ने हँसते हुए ही साठ बाणों द्वारा जलसंघ की चौड़ी छाती पर गहरी चोट पहुँचायी। फिर अत्यन्त तीखे क्षरप्रहार से जलसंघ के विशाल धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट दिया और तीन बाण मारकर उसे घायल भी कर दिया।
माननीय नरेश! जलसंघ ने बाण सहित उस धनुष को त्याग कर सात्यकि पर तुरंत ही तोमर का प्रहार किया। फुफकारते हुए महान सर्प के समान वह भयंकर तोमर उस महान समर में सात्यकि की बायीं भुजा को विदीर्ण करता हुआ धरती में समा गया। अपनी बायीं भुजा के घायल होने पर सत्यपराक्रमी सात्यकि ने तीस तीखे बाणों द्वारा जलसंघ को आहत कर दिया। तब महाबली जयसंघ ने सौ चन्द्राकार चमकीले चिह्नों से युक्त वृषभ-चर्म की बनी हुई विषाल ढाल और तलवार हाथ में ले ली तथा उस तलवार को घुमाकर सात्यकि पर छोड़ दिया। वह खंड सात्यकि के धनुष को काटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। धरती पर पहुँचकर वह अकात चक्र के समान प्रकाशित हो रहा था। तब सात्यकि ने साखू के तने के समान विशाल, इन्द्र के वज्र की भाँति घोर टंकार करने वाले तथा सबके शरीर को विदीर्ण करने में समर्थ दूसरा धनुष हाथ में लेकर उसे कान तक खींचा और कुपित हो एक बाण से जलसंघ को बींध डाला। फिर मधुवंश शिरोमणि सात्यकि ने हँसते हुए से दो छुरों का प्रहार करके जलसंघ की आभूषण भूषित दोनों भुजाओं को काट दिया। तदन्तर सात्यकि ने तीसरे छुरे से उसके सुन्दर दाँतो वाले मनोहर कुण्डलमण्डित विशाल मस्तक को काट गिराया। मस्तक और भुजाओं के गिर जाने से अत्यंत भयंकर दिखायी देने वाले जलसंघ के उस धड़ ने अपने खून से उस हाथी को नहला दिया।
प्रजानाथ! युद्ध स्थल में जलसंघ को मारकर फुर्ती करने वाले सात्यकि ने हाथी की पीठ से उसके हौदे को भी गिरा दिया। खून से भीगे शरीर वाला जलसंघ का वह हाथी अपनी पीठ से सटकर लटकते हुए उस हौदे को ढो रहा था। सात्यकि के बाणों से पीड़ित हो वह महान गजराज घोर चीत्कार करके अपनी ही सेना को कुचलता हुआ भाग निकला। आर्य! वृष्णि प्रवर सात्यकि के द्वारा जलसंघ को मारा गया देख आप की सेना में महान हाहाकार मच गया।" संजय बोले- "महाराज! अत्यन्त क्रोध में भरे हुए कर्ण ने भी उस युद्धस्थल में अपनी मर्यादा से च्युत न होने वाले सात्यकि पर बाणों की वर्षा करते हुए धावा किया। कर्ण ने भूरिश्रवा और जलसंघ के वध को सहन न करने के कारण अपने बाणों की वर्षा से शिनिपौत्र सात्यकि को मथ डाला।"
टीका टिप्पणी
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