हिडिम्ब वध

हिडिम्ब नामक राक्षस का उल्लेख महाभारत में हुआ है। इसका वध पांडू पुत्र भीम ने किया था। हिडिम्बा नामक राक्षसी जिसका विवाह भीम से हुआ था वह इसी कि बहन थी।

पांडवो का दक्षिण की ओर बढ़ना

लाक्षागृह षड्यन्त्र से बच निकलने के बाद पांडव गंगा पार करके दक्षिण की ओर बढ़ते रहे तथा घने जंगल में पहुँच गए। थकान और भूख-प्यास से सभी का बुरा हाल था। भीम सबको एक वट-वृक्ष के नीचे बैठाकर पानी की तलाश में इधर-उधर देखने लगे। पेड़ पर चढ़कर उन्होंने पास ही कुछ पक्षी देखे तथा समझ लिया कि अवश्य ही उधर पानी है। वे उसी तरफ गए तथा एक जलाशय के किनारे पहुँच गए, जहाँ उन्होंने अपनी प्यास बुझाई तथा स्नान किया। वे माता और भाइयों के लिए भी पानी लाए। थकान होने के कारण वे सब सो गए थे।

हिडिम्बा का भीम के पास जाना

उस जलाशय के पास हिडिंब नाम का एक राक्षस रहता था। उसकी बहन हिडिंबा भी उसी के साथ रहती थी। जैसे ही राक्षस को मानव-गंध मिली, उसने अपनी बहन को उन्हें मारकर मांस लाने को भेजा। हिडिंबा भीम को देखकर उस पर मोहित हो गई। उसने सुंदर युवती का रूप धारण कर लिया तथा बोली कि मेरे भाई ने मुझे तुम्हें मारने के लिए भेजा था, पर मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। सोए हुए लोगों को जगाओ, जिससे कि मैं उन्हें अपनी माया से सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दूँ। यदि मेरा भाई यहाँ आ गया, तो वह सबको मार डालेगा। वह बड़ा क्रूर तथा बलवान है।

भीम ने कहा कि मुझे तुम्हारे भाई से कोई भय नहीं है। तभी वहाँ हिडिंब आ गया। जब उसने अपनी बहन को सुंदर युवती के रूप में भीम से बात करते देखा तो अत्यंत क्रुद्ध हो गया। पहले वह हिडिंबा को ही मारने दोड़ा। भीम ने उसे बीच में ही पकड़ लिया। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा। शोर सुनकर पांडव तथा माता कुंती जाग गई। तभी भीम ने हिडिंब को पटक दिया तथा उसके प्राण निकल गए।

हिडिम्बा और भीम

हिडिम्बा और भीम का विवाह

माता कुंती ने युधिष्ठिर की सलाह पर भीम को हिडिंबा से विवाह करने की अनुमति दे दी। समय पर उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह बहुत पराक्रमी योद्धा हुआ। जब भीम अपनी माता और भाइयों के साथ उस वन को छोड़कर आगे जाने की तैयारी करने लगे तो घटोत्कच ने भीम से कहा कि, “पिताजी, जब भी ज़रूरत हो, मुझे याद कीजिएगा। मै। आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा।”



टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 142 |


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