बृहन्नला

बृहन्नला महाभारत में एक वर्ष के अज्ञातवास के समय पराक्रमी अर्जुन द्वारा अपनाया गया नाम था। अर्जुन बृहन्नला के नाम से रनिवास में स्त्रियों को विशेषकर राजा विराट की कन्या उत्तरा, उसकी सखियों एवं दास-दासियों को नृत्य और संगीत आदि की शिक्षा देते थे।

  • महाभारत में पांडवों के वनवास में एक वर्ष का अज्ञातवास भी था, जो उन्होंने विराट नगर में बिताया।
  • विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान पूर्णत: छुपाकर रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया।
  • अज्ञातवास के इस एक वर्ष में अर्जुन को 'षण्ढक' और 'बृहन्नला' कहा गया है। 'षण्ढक' शब्द का अर्थ है- 'नपुंसक'। अर्जुन इस समय स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी के शाप से एक वर्ष के लिए नपुंसक हो गये थे।
  • बृहन्नला का मूल शब्द 'बृहन्नल' है। विद्वानों ने 'र' और 'ल' को एक-सा माना है; अत: बृहन्नल का अर्थ बृहन्नर अर्थात 'श्रेष्ठ' या 'महान मानव' है। भगवान नारायण के सखा होने के कारण अर्जुन नरश्रेष्ठ हैं ही।
  • इन्द्रपुरी में अप्सरा उर्वशी अर्जुन पर मोहित हो गई थी, किन्तु उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। इसीलिए अर्जुन को बृहन्नला के रूप में विराट की कन्या उत्तरा को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी।


संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः